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________________ वर्ष २ किरण १] " नातः परः परमवचोभिधेयो, लोकभयेऽपि सकलार्थविदस्ति सार्वः । उच्चैरितीव भवतः परिघोयषन्त-, भक्तामर स्तोत्र ७१ तो कल्पना निःसार है और न अभी तक किसी विद्वानने समर्थन ही किया है । वृष्टिर्दिवः सुमनसां परितः पपात, प्रीतिप्रदा सुमनसां च मधुव्रतानाम् । राजीवसा सुमनसा सुकुमारसारा, अब श्वेताम्बर सम्प्रदायकी मान्यता पर विचार कीजिये । श्वेताम्बर सम्प्रदायमें कल्याणस्ते दुर्गभीरसुरदुन्दुभयः सभायाँम् । ३२ | मंदिर स्तोत्र तो दिगम्बर सम्प्रदाय के समान ४४ लोक बालाही माना जाता है किंतु भक्तामर - स्तोत्रको श्वेताम्बर सम्प्रदाय ४८ श्लोक वाला न मानकर ४४ पद्यों वाला ही मानता है । ३२-३३-३४-३५ नम्बर के चार पत्र श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने अपने भक्तामर स्तोत्र में से निकाल दिये हैं । इसीसे प्रचलित भक्तामरस्तोत्र साम्प्रदायिक भेद से दो रूप में पाया जाता है । सामोसम्पद मदानि ते सुदृश्यः । ३३ । पूष्मामनुष्य सहसामपि कोटिसंख्या, भाजां प्रभाः प्रसरमन्वहया वहन्ति । अन्तस्तमः पटल भेदमशक्तिहीनं, जैनी तनुद्युतिरशेपतमोऽपि हन्ति | ३४ | देव त्वदीय सलाम केवलाय, भक्तामर स्तोत्र में दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यतानुसार ४८ लोक ही क्यों नहीं हैं ? इसका उत्तर तीन प्रकार प्राप्त हुआ। एक तो यह कि जब कल्याणमंदिरस्तोत्र ४४ श्लोकोंका है, तब उसकी जोड़का भक्तामर स्तोत्र ४४ श्लोकोंकाही होना चाहिये - वह ४८ श्लोकोंका कैसे हो ? बोधातिगाधनिरुपप्लवरत्नराशेः । घोपः स एव इति जनतानुमेते, गम्भीरभारभरितं तव दिव्यघोषः | ३५ | ये ४ श्लोक, जोकि भक्तामर स्तोत्र में और अधिक बतलाये जाते हैं, जिस रूप में प्राप्त हुए हैं उसी रूप में यहाँ रक्खे हैं । इन श्लोकोंके विषयमें यदि क्षणभर भी विचार किया जाये तो ये चारों श्लोक भक्तामर - स्तोत्रके लिये व्यर्थ ठहरते हैं; क्योंकि इन श्लोकों में क्रमशः दुन्दुभि, पुष्पवर्षा, भामंडल तथा दिव्य ध्वनि इन चार प्रातिहार्योंको रक्खा गया है और ये चारों प्रातिहार्य इन श्लोकोंके बिना ४८ श्लोक वाले भक्तामर स्तोत्रमें भी ठोक उसी ३२-३३-३४३५वीं संख्या पद्योंमें यथाक्रम विद्यमान हैं। अतः ये चारों श्लोक भक्तामरस्तोत्रके लिये पुन. मुक्तिके रूपमें व्यर्थ ठहरते हैं तथा इनकी कविता शैली भी भक्तामर स्तोत्रकी कविताशैलीके साथ जोड़ नहीं खाती। अतः ५२ श्लोक वाले भक्तामर स्तोत्रकी 1 दूसरे, भरत क्षेत्रके २४ तीर्थंकर और विदेह क्षेत्रोंक २० वर्तमान तीर्थंकर इनकी कुल संख्या ४४ हुई, इस संख्या के अनुसार भक्तामर - स्तोत्रके श्लोकोंकी संख्या भी ४४ ही होनी चाहिये । तीसरे, श्वेताम्बर जैन गुरुकुल के एक स्नातकसं यह उत्तर प्राप्त हुआ कि भक्तामर स्तोत्र एक मंत्रशक्ति से पूर्ण स्तोत्र है। उसके मंत्रोको सिद्ध करके मनुष्य उन मत्रोंके श्राधीन देवोंको बुला २ कर तंग करते थे । देवोंने अपनी व्यथा मानतुंगाचार्यको सुनाई कि महाराज ! आपने भक्तामर स्तोत्र बनाकर हमारी अच्छी आन ले डाली । मंत्रसिद्ध करके लोग हमको चैनसे नहीं बैठने देतेहर समय मंत्रशक्तिसे बुलाबुलाकर हमें परेशान करते हैं । मानतुंगाचार्यने देवों पर दया करके भक्तामर स्तोत्र में चार श्लोक निकाल दिये । श्रतः भक्तामर ४४ श्लोकोंवाला ही होना चाहिये ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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