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________________ वर्ष २, किरण १२] कथा कहानी जो 'लघु' विशेषण दिया है वह मूलमें नहीं है। परन्तु हमारा अनुमान है कि पं० हरिषेण किसी भट्टारकपडित जीने यह विशेषण अपनी तरफसे नहीं दिया है, के शिष्य हैं और बहुत पुराने नहीं हैं। अपने गुरुसे बल्कि उनके नोटोंमें मूलग्रन्थकी नीचे लिखी हुई पंक्ति रूटकर उन्होंने यह ग्रन्थ बनाया है। दी हुई है, जिसे शायद पं० जुगलकिशोरजी उक्त नोटों. यह एक और आश्चर्यजनक बात है कि हरिषेण कृत की कापी करते समय छोड़ गये हैं । पत्र १९की दूसरी जगत्सुन्दरी योगमालाके ही समान इसी नामका एक तरफ़ 'सिरिपरहसमणमुनिना संखेवेणंच बालसंतं । और ग्रंथ मुनिजसइत्ति ( यशःकर्ति ) कृत भी है और ६१६' के बाद ही यह पंक्ति दी हुई है उसकी भी एक अधरी प्रति ( ३५ से ७३ अध्याय तक) .. "भव्व उबयारहेड भशिवं बहुपुण्फयंतस्य" और भाण्डारकर श्रोरियण्टल इन्स्टिट्यूट (नं० १२४२ प्रॉफ इस पंक्तिपर नं० ११ दिया हुआ है । अर्थात् बालतंत्र मन् १८८६-६२) में है। योनिप्राभूतकी प्रति देखने अधिकारके समाप्त होनेके बाद जो दूसरा अधिकार समय मैंने उसे भी देखा था और कुछ नोट ले लिये शुरू हुश्रा है उसकी यह ग्यारहवीं गाथा है और शायद थे । हरिषेणकी योगमालापर विचार करते समय अधिकार समाप्तिकी गाथा है। उसको भी अोमल नहीं किया जा सकता। यह 'लघु' विशेषण भी बड़ा विलक्षण है। पं० अभी अभी पता लगा कि वह ग्रन्थ ( ३५ से ४३ हरिषेणको यह मालम था कि भतबलि-पुष्पदन्त धरसेना- अध्याय तक) छप गया है और श्राज में उसकी एक चार्य के शिष्य थे, तब प्रश्नश्रवण (?) के शिष्य भी प्रति लेकर अनेकान्त-सम्पादक के पास भेज रहा हूँ। भतबलि पुष्पदन्त कैसे हो सकेंगे, शायद इसी असमंज- पाठकोंको शीघ्र ही उनके द्वारा उक्त ग्रंथका परिचय समें पड़कर उन्होंने यह 'लघु' विशेषण देकर अपना मिलेगा, ऐमी श्राशा करनी चाहिए । समाधान कर लिया होगा। बम्बई,रक्षाबन्धन २६-८-३६ WAWANIA N ama barabara haNGAN DAN DISSEN ले०–बाबू माईदयाल जैन बी.ए., बी.टी. ER REACARRIERITAITRIERIEPIECERTRAINRITERATOREARRIERTAITREAM FRI पूछा और कहा कि क्या तुम इसलिए रो रही हो कि १ रोनेका कारण तुम्हारा पति और दो लड़के युद्ध में मारे गये हैं। उस ११०१ ईस्वी में रूस और जापानमें घोर युद्ध बिदा विधवाने जवाब दिया, "नहीं, मैं इसलिए नहीं रो रही हुना था। एक दिन एक जापानी विधवा अपने घरमें कि मेरा पति और दो पुत्र बदाई में मारे गये। मैं तो बैठी थी । उसका पति तथा दो जवान लड़के युबमें इसलिए रो रही हूँ किपब मेरे पास और कोई पुत्र काम पाचुके थे। वह कुछ रो रही थी और बड़ी उदास नहीं है जिसे मैं देशके लिए बदनेको भेजदूं।" थी। पदोसमेंसे किसीने पाकर उसके रोनेका कारण
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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