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________________ वर्ष २, किरण ११] वीर भगवान् का वैज्ञानिक धर्म ६२५ भक्ति स्तुति वा पूजा उपासनासे ईश्वरको खुश करके करते हुए और दुनियाभरको तहस नहस करते हुए भी अपने सांसारिक कार्य सिद्ध करानेकी प्रार्थना करते जब थोड़ी-सी खुशामद और भेंट भेंटावनसे मालिक रहते हैं । हमारा चालचलन कैसा है, हम नित्य राजी हो जाता है तब कौन मूर्ख है जो सदाचारी बननेकैसे कैसे भयंकर अपराध करते हैं, उसके नियमोंको की घोर मुसीबतमें फँसे । यह ही कारण है कि दुनियातोड़ते हैं, उसकी प्रजाको सताते हैं और बेखटके जुल्म से पाप दूर नहीं होता है और सुख शान्तिका राज्यकरते हैं, इसकी कुछ भी परवाह न करके जहाँ कुछ स्थापित नहीं हो सकता है, जब तक कि इस खुशामददुःख हुमा व आपत्ति पाई या कोई इच्छा पूरी करानी खोरी और पूजा वन्दनासे मालिकके राजी होनेका बि. चाही तब तुरन्त ही उसकी बड़ाई गाने लग जाते हैं श्वास लोगोंके हृदयमें जमा हुआ है। और रो कर गिदगिड़ाकर दीन हीन बनकर अपने दुःखों पशु पक्षियोंको मारकर ईश्वरके नाम पर होम कर को दूर करने तथा अभिलाषाओंके पूरा करानेकी प्रार्थना देना ही महान धर्म है, ऐसा करनेसे सबही पाप क्षय करने लग जाते हैं और उम्मीद करने लगते हैं कि इस हो जाते हैं और सब ही मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। प्रकार की हमारी पूजा-वन्दना और प्रार्थनासे वह ज़रूर क्यों ? क्यों क्या ईश्वरकी यही प्राज्ञा है, उसको हमारे कार्य सिद्ध करदेगा व महान से महान अपराधों प्रसन्न करनेका यही सबसे बड़ा उपाय है. यज्ञमें होम पर कुछ भी ध्यान न देगा। करनेके वास्तेही तो परमेश्वरने पशु पक्षी पैदा किये हैं। पापीसे पापियोंके भी भारीसे भारी कार्यसिद्ध हो- परन्तु आजकल तो कहीं भी होम नहीं होता है और जाने और भयानकसे भयानक आपत्तियोंके दूर होजानेके यदि हिदुस्तानमें कहीं होता भी हो तो हिन्दुस्तानसे इस सहज उपायका विश्वास ही लोगोंके हृदयसे अप बाहर तो किसी भी देशमें न अब होता है न पहले राधोंका भय दूर कर सदाचारी बनने की ज़रूरत को ही कभी होता था, तब वहाँ क्यों पशु-पक्षी उत्पन्न होते ख्यालमें नहीं आने देता है । जब खुशामद करने, पैरोंमें हैं ? जवाब- एक छोटेसे राजाके भी कामों में जब प्रजाको शिर देकर गिड़गिड़ाने और मान बड़ाईके लिये फूल पत्र कुछ पछने-टोकनेका अधिकार नहीं होता है तब सर्वभेंट चढ़ानेसे ही परमेश्वर महापापियोंका भी सहायक शक्तिमान परमेश्वर के कामों में दरवन्च देने और पूछ ताछ हो जाता है, उनके सभी अपराध मुश्राफ कर सबही करनेका क्या किसी को अधिकार होसकता है ? फिर संकटोंके दूर करनेको तय्यार हो जाता है; तब पाप करने उसके भेदोंको कोई समझ भी तो नहीं सकता है, तब से क्यों डरें और क्यों सदाचारी बननेकी झंझटमें पढ़ें। फिजूल मग़ज़ मारनेसे क्या फायदा । जो उसका हुक्म सदाचारी बनना कोई प्रासान काम होता तब तो खैर है उस पर आँख मीचकर चलते रहो, इसहीमें तुम्हारा वह भी कर लेते परन्तु वह तो लोहेके चने चबाने और कल्याण है नहीं तो क्या मालूम कितने काल तक नरतलवारकी धार पर नाचनेसे भी ज्यादा कठिन है, कठिन कोंमें पड़े-पड़े सड़ना पड़े और कैसे महान् दुःख भोगने ही नहीं असंभवके तुल्य है, इस कारण कौन ऐसी पदें। . मुसीबतमें पड़े । सब कुछ पाप करते हुए भी सब प्रकार- ईसाइयोंका इससे भी बिल्कुल ही विलक्षण कहना के गुलछरें व मौज उड़ाते हुए भी बेधड़क खून खराबा है कि कोई भी आदमी पापोंसे नहीं बच सकता है और
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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