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________________ वीर भगवानका वैज्ञानिक धर्म [लेखक-बा• सूरजभानु वकील]] सारीजीव सब ही महादुख उठाते और धक्के खाते है उसहीके पीछे दौडने फिरने लगता है, कोई जिस हुए ही ज्यों त्यों अपना जीवन व्यतीत करते हैं, प्रकारका भी अनुपान, क्रिया कलाप वा विधिविधान अपनी अभिलाषाओं और जरूरतों को पूरा करनेके बताता है, उसहीके करनेको वा तम्पार हो जाता है, वास्ते सबही प्रकारका कष्ट उठाने और जी तोर कोशिश सब ही प्रकारका नाच नाचनेको मुस्तैद रहता है और करने पर भी जब उनकी पूर्ति नहीं होती है तो लाचार भक्ति व उत्साहके साथ खूब दिख बगाकर नाचता है,वि. होकर ऐसी अदृष्टशक्तियों की तलाशमें भटकते फिरने शेषकर ऐसे कार्य करना तो वह बिना सोचे समझे और लगते हैं जो किसी रीतिसे उनसे प्रसन्न होकर या दीन बिना किसी हील हुजतके माँख मींचकर ही अंगीकार हीन समझ, दयाकर, उनकी ज़रूरतोंको पूरा कर उनके कर लेता है जिसमें कष्ट तो उठाना पड़े बहुत ही थोड़ा कष्टों को हल्का करदें। मनुष्य जीवनकी इस ही बेकली, और उससे सिद्धि होनेकी पाशा दिखाई जाती है। बेचैनी और सहीजानेवाली तड़फने तरह तरहके शक्ति बडे-बड़े महान कार्योंकी जैसा कि गंगाजी में एकबार शाली देवी देवताओं और संसारभरका नियन्त्रण करने गोता लगानेसे, जन्म जन्मान्तरके पापोंका दूर हो जाना, वाले एक ईश्वरकी कल्पना कराकर, उनकी भक्ति स्तुति इत्यादि। पूजा बंदना भादि करने और बलि देने, भेंट चढ़ाने मनुष्योंकी इनही तरह तरहकी मुसीबतों, मापत्तियों भादिके द्वारा उनको खुश करके अपना कारज सिद्ध भाशाओं, अभिलाषाओं और भटकायोंकी पतिके वास्ते करानेके अनेक विधि विधानोंकी उत्पत्ति करादी है। एकपे एक नई और भामान नरकीय निकलाती रहनेमे, इसके इलावा जिस प्रकार दूबता हुआ मनुष्य तिनके नये नये धर्मों और अनुष्ठानों की उत्पत्ति होती रहती है का भी सहारा गनीमत समझने लगता है, निराशाकी और भूने भटके मनुष्य मृगतृष्णाकी नरा चमकनी रेतभंवरमें चक्कर काटता हुआ मनुष्य भी विचारहीन होकर को पानी समझ, उसकी तलाशमें दौड़ते फिरने लगते अंधाधुंध सहारे इंदता फिरने लगता है, जैसा कि सीता है और बराबर भटकते फिरते रहेंगे, जबतक कि वे जीके खोये जानेपर रामचन्द्रजी वृक्षों खतामोंसे उसका विचारसे काम नहीं लेंगे और वस्तु स्वभावकी खोजकर पता पूंछते फिरने लग गये थे। जिसका हाथी खोया उसहीके अनुसार सम्भव प्रसंभव और सच झूठकी जाता है वह घरके हांडी वर्तनोंमें हाथ सन डालकर तमीज़ नहीं करेंगे। सबसे भारी मुरिकता इस विषय में इंडने लग जाता है । इस कहावतके अनुसार मनुष्य भी यह है कि महा मुसीबतों में फंसे हुए. तथा अपनी महान् अपनी असम मुसीबतों को दूर करने और महाप्रबल इच्छामों और अभिलाषाभोंकी पूनिके लिये, भटकने अभिलाषामों और तृष्णाओं को पूरा करने के वास्ते फिरनेवाले मनुष्यों को ऐसे ऐसे भासान उपायोंसे उनके अंधा होकर जो भी कोई किसी प्रकारका सहारा बताता द्वारा किसी प्रकारको कार्यसिदिन होनेपर भी, अश्रदा
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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