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वर्ष २, किरण ११]
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स्त्री-शिक्षा-पद्धति
उचित स्थान दिया गया है तथा नियों व पुरुषों है। की शिक्षापद्धतिको भिन्न रक्खा गया है तो वह जापानकी लड़कियां हमेशा शान्त व प्रसन्न देश जरूर उन्नत होगा और वहाँका एक भी रहती हैं। विषय-वासना उन्हें नहीं सताती । मनुष्य बेरोजगार व आवारा नहीं होगा। शोक और क्रोध मादिके अवसरों पर वे सदा
जापान देश जो आजकल 'पूर्वी ब्रिटेन' धैर्यसे काम लेती हैं। यही कारण है कि जापानकी कहलाता है उसके शिक्षा-शास्त्रियोंने इस विषयमें स्त्रियाँ संसारमें सुशीलताके लिये प्रसिद्ध होरही हैं। बड़ी दूरदृष्टितासे काम लिया है। उन्होंने उपयुक्त वहाँके छोटे बच्चे बड़े बचोंका भापर करते बातोंको भली-भाँति समझा और उनसे ठीक हैं। कन्याके बड़ी होने पर उससे घरका काम-काज फायदा उठाया । सबके लिये एक ही शिक्षापद्धति करवाया जाता है । नौकरोंक होते हुए भी मफाई न रखकर, स्त्रीशिक्षा-पद्धतिको उन्होंने बिल्कुल ही और भोजन बनानेका कार्य लड़कियां व नियां ही भिन्न रक्खा है।
किया करती हैं। सीने-पिरोन और कपडे धोने में __ वहाँ कन्याओंको गृहकार्यों. सरल-शिल्प और भी जापानकी लड़कियां अति निपुण होती हैं । ललितकलाओंमें दक्ष किया जाता है। विद्यालयोंकी धोबीस वे शायद ही कभी कपड़े धलवाती हों। शिक्षाके अतिरिक्त माताएँ घर पर भी अनेक प्रकार जापानकी शिक्षा-पद्धतिने जापानकी बियोंको की सन् शिक्षाएँ देती हैं । बचपनमें ही माताएँ पत्नी, जननी और देश-सेविका आदिके सच्चे कन्याओंको बड़ोंका आदर करनेका उपदेश करती अर्थोंमें परिणत कर दिया है । देवीकी उपमा धारण हैं। इसीसे जापानका पारिवारिक जीवन अधिक करनेवाली नारियोंको देवीम्वरूप ही बना दिया सुखमय होता है । चंचलता दबाने और धैर्य धारण है। शिक्षाप्रधान देश होने और शिक्षाका समुचित करनेकी उन्हें शिक्षा दी जाती है । माता ममय प्रबन्ध होनेके कारण वहाँके लोग सब शिक्षित हैं ममय पर उनकी परीक्षा भी लेनी है और देग्यती और मब म्री-पुरुषों का यह ध्येय होगया है कि हम है कि जो शिक्षा कन्याओंको दी जा रही है वह राष्ट्र के अवयव हैं, हमारा जन्म देश-मयाकं लिय कार्यमें परिणत भी हो रही है या कि नहीं । इमसे हुआ है और इमी कार्यको करने करते हमारी मृत्य कन्याएँ शीघ्र ही ये गुण मीख जाती हैं। बहुतमी होगी। कन्याओंको तो ये सब गुण मिखानेकी आवश्य- अतः खियांकी शिक्षा प्रायः पुरुषमि भिन्न होनी कना भी नहीं होती, जब कि उनकी माना म्वयं चाहिये और उसके लिये हमें बहुन करके जापानका उनके लिये आदर्श होती है । वे स्वयं ही इन गुणों अनुकरण करना चाहिये । को मातासे ग्रहण कर लेती हैं । मेहमानवाजी 'वीरसेवामन्दिर' मरमावा । (अतिथिसत्कार ) के लिये तो जापान प्रसिद्ध ही १-८-३६ ई.