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________________ नारो समुत्थान - स्त्री-शिक्षा-पद्धति [ले०-भवानीदत्त शर्मा 'प्रशान्त'] पति ने स्त्रियों व पुरुषोंको भिन्न भिन्न मनो- के लिये क्लर्क पैदा करे अथवा ग्रेजुएट निकाले वत्तियों का बनाया है। इसलिये उनके उत्तर' और इस प्रकार ब्रिटिश साम्राज्यका विस्तार करें। दायित्व भी भिन्न भिन्न होने चाहिये । 'रुपोंकी फल इसका आखिर यह हुआ कि बेकार अपेक्षा त्रियों में लज्जा, शान्ति, दया आ.द गुण (श्रावारा) पुरुषोंके विषय में तो अखबारोंमें खबरें विशेष रूपसे होते हैं, इसीसे पूर्वाचार्योंने भोजन बरावर छपा ही करती थीं और अब भी छपती हैं। तथा भरण पोषण-सम्बंधी गृहकार्य स्त्रियोंको सौंपा पर अब इसने यहाँ तक उन्नतिकी है कि समाचारऔर वे गृहदेवियोंके नामसे पकारी जाने लगीं। पत्रोंमें "पाँचसौ आवारा व बेरोजगार लड़कियाँ" घर-गृहस्थीका कार्य त्रियाँ और बाकी बाहर "एक हज़ारसे भी अधिक गुम लड़कियाँ' इत्यादि के कार्योंको पुरुपवर्ग करने लगा। इस तरह लोगों नामोंके शीर्षक भी आने लगे हैं । गुम होनेका भी का जीवन सुख-शान्तिपूर्वक बीतने लगा । पर प्रायः कारण यही होता है कि पढ़कर लड़कियां समय बदला। पाश्चात्य शिक्षाका प्रचार 'ढा । नौकरीकी तलाशमें दर निकल जाती हैं और सभी लोग उसीकं रंगमें रंगे जाने लगे। सियों व नौकरी न मिलने पर वे गुम हो जाती हैं। दिनोंकन्याओंको भी वही शिक्षा दी जाने लगी। नकी दिन यह संख्या बढ़ती जा रही है। शिक्षा-पद्धतिमें किसी भी तरह का अन्तर नहीं किसी भी देश व जातिकी उन्नति उसकी रक्खा गया। इस शिक्षा-पद्धतिका ध्येय सिर्फ शिक्षापद्धति पर निर्भर है । यदि किसी देशकी इतना ही रहा कि वह ब्रिटिश गवर्नमेण्ट-सर्विस शिक्षापद्धति ठीक है और शिक्षामें शिल्पकलाको
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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