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________________ . अनसन्धान जैन और बौद्धधर्म एक नहीं [ले.-श्री. जगदीशचन्द्र जैन एम.ए., प्रोफेसर लवा कालेज, बम्बई ] जान दिनोंमे कुछ मित्रोंकी इच्छा थी कि ब्रह्मचारी त्वमें और शाश्वत मोक्षकी प्रामि में बौद्ध और जैनागम में मीतलप्रमाद जीने "जैन-चौद्ध तत्वज्ञान" नामकी विरोध नहीं है" । हम यहाँ पाठकोंको यह बताना पुस्तकमे जो जैन और बौद्धधर्म के ऐक्यके विषय में चाहते है कि उक्त विचार अध्यंत भ्रामक है। जैनधर्मको अपने नवे विचार प्रकट किये हैं, उनपर मैं कुछ लिग्वं । उत्कृष्ट और प्राचीन सिद्ध करने के लिये इस तरह के उन. पुस्तकको प्रकाशित हुए बहुतमा ममय निकल विचागेको जनतामें पलाना. यह जैन और बौद्ध दोनों ही गया। किंतु लिखने की इच्छा होते हुए भी कार्य भागमे धर्मों के प्रति श्रन्याय करना है । ब्रह्मचारी नी "बौद्ध मैं इस ओर कुछ भी न कर मका । अभी कुछ दिन हाए प्रथोंके इंग्रेजी उल्थ पढ़कर" तथा "मीलोन के कुछ घौद्ध मुझे बम्बई युनिवर्सिटी के एक एफ. ए. के विद्यार्थीको माधुनोंके साथ वार्तालाप करने" मात्र ही उन निर्णय पाली पढ़ानेका अवमर प्राम हुा । मेरी इच्छा मिग्मं पर पहुंच गये हैं। मनमुच ब्रह्मचारीनी अपने उक्त जागृत होउठी, और अब श्रीमान पंडित जुग-बकिशोर जी- क्रान्तिकारक (?) विचागेम अकलक श्रादि जैन के पत्रमे तो मैं अपने लोभको मवरण हीन कर मका। विद्वानोंकी भी अवहेलना कर गये हैं। नीचे की बातों ब्रह्मचारी सीतलप्रमाद जो और उक्त पुस्तक पर स्पर होगा कि ब्रह्मचारीजीके निष्कर्ष कितने निर्मुल हैं। सम्मतिदाता बाब अजितप्रसाद जी वकीलका कथन है कि सबमे प्रथम बात तो यह है कि जैन परम्पराम "बौद्धमतके सिद्धांत जैन मिद्धांतम बहुत मिल रहे हैं"। इतने विहान हुए, पर किमीने कहीं भी जैन और बौद्ध "जैन व बौद्ध में कुछ भी अन्तर नहीं है। चाहे बौद्धधर्म धर्मकी आत्मा और निर्वाण-मंबंधी मान्यताप्रोकी प्राचीन कहें या जैनधर्म कहें एक ही बान है" । इन ममानताका उल्लेख नहीं किया । शायद ब्रहाचागतीको महानुभावोंका कथन है कि "जीव तत्त्व के ध्रुवरूप अस्ति- ही सबसे पहले यह अनोखी मूम सूझी ६ । इतना ही
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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