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________________ HIYA ITIR नीति विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार वत्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-वीर-सेवामन्दिर (ममन्तभद्राश्रम) सरसावा, जि०महारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट मर्कम, पो० ब० नं० ४८, न्यू देहली भाद्रपद कृष्णा, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १६६ वर्ष २ --किरण - वन्धो भस्मक-भस्मसात्कृतिपटुः पद्मावतीदेवतादत्तोदात्तपद स्वमंत्रवचन-व्याहूत-चन्द्रप्रभः । आचार्यस्स समन्तभद्रगणभृयेनेह काले कली जैनं वर्त्म समन्तभद्रमभवद्भद्रं समन्तान्मुहुः ॥ -प्रवणबेलगोल शिलेख १५ (६७) मुनिसंघके नायक वे प्राचार्य समन्तभद्रवन्दना किये जानेके योग्य हैं जो अपनी 'भम्मक' व्याधिको भस्मीभूत करने में बड़ी यक्तिके साथ निर्मूल करनेमें-प्रवीण हुए हैं, पनावनी नामकी दिव्यशक्तिके प्रभावसे जिन्हें उच्चपदकी प्राप्ति हुई थी. जिन्होंने अपने मंत्ररूप वचनबलस-योगमामध्यसे-बिम्बरूपमें चन्द्रप्रभ भगवानको बुला लिया था-अर्थात् चन्द्रप्रभ-बिम्बका पाकर्षण किया था और जिनके द्वारा मर्वहितकारी जैनमार्ग ( स्याहादमार्ग) इस कलिकालमें पुन: सब पोरसे भद्ररूप हुआ है उसका प्रभाव सर्वत्र व्याप्त होनेसे वह सबका हित करनेवाला और प्रेमपात्र बना है। + श्रीमूलसंघ व्योम्नेन्दुर्भारते भावितीर्थहन् । देखें समन्तभद्राख्यो मुनि यात्पदर्दिकः ॥ -विकान्तकौरवे, इस्तिमाः यह पचकवि भव्यपाके जिनेन्द्रकल्पाबाबद' में भी प्रायः ज्योंका वों पाया जाता। इसमें चौबा परव'बीबालासपदर्दिकः' दिया है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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