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________________ अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं०२४६५ 3 सके।" हुमा । उसने कौतुक्या पावक पन्द्रगुप्लके पास जाकर (२८) हा-"राजन् ! हमें भी दाल दीजिये।" ईर्खाका परिणाम-पो परिडत दरिया प्राप्त पालक पन्नास चावल्यकी बातसे न मिलका न करनेकी नीयतसे एक सेटके यहां पहुंचे। विद्वान् समझशर्माबा-उसने राबानोंकी ही तरह भादेश दिषा- पर सेठ साहबने उनकी सकी भाव-भगवकी। उनमेंसे "सामने जो गाएँ चर रही है, उनमें जो भी हमे पसन्द एक पविडत जव स्नान वगैरहके लिए गए तो सेठजी हो बेवासकता है।" दूसरे परिडतसे बोले-"महाराज ! ये आपके साथी तो चाणक्य मुस्कराकर बोला-"महाराजाधिराज! महान् विद्वान् मालूम होते हैं। परिस्तजीमें इतनी पह गाएँ तो गाँव पाखोंकी है, वे मुझे क्यों बेजाने उदारता कहाँ जो दूसरेकी प्रशंसा सुनो । मुँर विगाद कर बोले-"विहान् तो इसके पदोसमें भी नहीं रहते चन्द्रगुप्तने जरा भृकुटी चढ़ाकर कहा-"भोये यह तो निरा बैत है।" सेठजी चुप हो गये । अब उक्त विप्र ! क्या नहीं जानते "पीर भोन्या बसुन्धरा।" परिखत संख्या वगैरहमें बैठे तो पहले परिखतबीसे बोले किसकी मजाल है जो मेरे पादेशकी अवहेलना कर “महाराज भापके साथी तो प्रकारण विद्वान् नवर माए।" इयानु परिस्त अपने हतपकी गन्दगीको बालक चन्मगुसका यह संकल्प सही निकला और परवेरते हुए बोले-"मनी, विद्वान् हान् कुक नहीं, पर अपनी पुवावस्थामें ही साधन-हीन होते हुए भी कोरा गया है।" समुष सम्राट बन बैठा। मोजमके समय एक्के मागे पास और दूसरेके सामने मुस रखवा दिया गपा, पंडितोंने देखा तो भाग बबूला होगए। बोले-सेठबी ! हमारा पर अपमान, इतनी लार्ड विलिंगटन-बास्तबमें बचपनी संस्कार बड़ी ता!" सेडबी हाथ जोपर गोवे-महाराज ! भविष्यमै माम्प-निर्माता होते है। रोनहार बाबकोंकी भाप ही बोगोंने तो एक दूसरेको गया और वा बतभामा उनके रदय होनेके पूर्व ही सूर्व-रेखाचोंके समान बापामतः गये और खाके योग्य पराकमैने सामने खने बगती है। इसी अवस्थामें से हुए - सदी । बाप ही पतबाइये इसमें मेरा प्यार है। सी सीमें किए गये संकल्प-बड़े होनेपर कार्यरूपमें हो चाप दोनोंको ही विद्वान समझता था, पर परिचित कर दिलाते है। एक बार पाक पिलिंगठनसे पाकिपात को मापने स्वपही वववादी।" सेठजीकी किसीने पवा किया यहमपीस क्या कहती रोष पासे परिडत बाजित हुए और परवाते हुए मगमें विजिगरने उत्तर दिया कि सोकसेनदी खडकब बने सगे-"पालवी बोपने साथीको बहाना एस विगिटन पुरवी वीबाई मॉक टन (पदी नही रेल समता, बस मी नहीं पाता , भतीज, ब, ख और पटनका बार बनेगा प्रविता पास करने से अपने सादियोंकी विलिंगान) पाविधिगडमी पर भविनावी प्रविटावा नसाना बत्तासांनु पाविर सब मिली। मनॉकी हमारी सीटी गति होती है।"
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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