SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 628
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं०२४६५ भादमियोंके सामने उनका मूल्य हाथीके दिखानेके उनके लिए तरसती है, पर उन तक उन आदर्शोको दाँतोंसे अधिक नहीं है । एक दिन हम वीरजयंती- पहुँचानेका जबानी, साहित्यिक या स्वयं उन पर उत्सबके अवसर पर रेडियोसे वीर-उपदेशका ब्राड चलकर उदाहरण रूपसे कभी कोई समुचित एवं कास्ट सुन रहे थे । जैनधर्मका अत्यन्त उज्वल तथा संतोषजनक प्रयत्न नहीं किया गया। उदार रूप जनताके सामने पेश किया जा रहा था, अतः अब आवश्यकता इस बातकी है कि वह बात तो सब ठीक थी; किन्तु जब यह ख्याल समाज अपने ध्येयको समझ, उस पर चलनेके लिए प्राया कि ब्राडकास्ट करने वाले महानुभाव कितने संगठन करे, अपने सच्चे नेता चुने, उनके पीछे चले बड़े स्थितिपालक, प्रतिगामी और संकुचित विचार और तन-मन-धनसे अपने आदर्श तथा उद्देश्यको वाले हैं, तब वहाँ बैठे हुए मित्रोंको इस विडम्बना प्राप्त करनेका प्रयत्न करे। साथ ही, समय समय. पर हँसी आगई। समस्त भारतमें रेडियो सुनने पर इस बातकी जांच पड़ताल भी करता रहे कि अब वाले भजैन विद्वान् उस समय क्या सोच रहे वह किधर जा रहा है। ऐसी सावधानी और सतहोंगे, यह जैनसमाजको और खास कर ब्राडकास्ट कता रखने पर ही वह अपने ध्येय तथा आदर्शको कराने वालोंको जरा सोचना चाहिए। प्राप्त कर सकेगा और अपने साथ साथ दूसरोंका सच बात तो यह है कि आज जनताको उन भी कल्याण कर सकेगा। भादर्शोंकी अत्यन्त अधिक आवश्यकता है, वह उस तरफ़ सौख्यका आकर्षण, इस भोर निराशाका दुलार ! इन दो कठोर-सत्योंमें है, निर्वाचित एक प्रवेश-द्वार !! हँसले, रोले इच्छानुसार, क्षणभंगुर है सारा विधान-- अस्थिर-जीवनको बतलाने, साँसें आती हैं बार-बार !! यदि भित्र-भिन हो जाएँ रंग, तो इन्द्र-धनुष्यका क्या महत्व ? नयनाभिराम है 'मिलन' अतः, है प्राप्त विश्वसे कीर्ति स्वत्व !! बस,इसी'मिलन' को कहते हैं, हम-तुम वह सब मिल 'विश्वलोक'क्षणभरका है यह दर्शनीय, पाते यथार्थमें यही तत्व !! जो भाष प्रेमका भाजन है, देता है कल वह कटु-विषाद ! है पर्ण-शत्रुता जिसे प्राप्त, भाता बह रह-रह हमें याद !! यह दुस-सुल की परिभाषाएँ, इनमें ध्रुवता कितनी विभक्त ? पस, स्वानुमतिके बल पर है-अस्तित्व, कह रहा नीतिवाद !! • भगवर वेग
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy