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________________ ५४४ अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं०२४६५ साधारणतया दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद ८४ कहे जाते . ७ तीर्थकरोंके सहोदर भाइयोका होना हैं । इन ८४ भेदोंकी सृष्टि-प्रसिद्धि दि० पं० हेमराजजी ८ स्त्री-मुक्ति कृत चौरासी बोल एवं श्वे यशोविजयजी रचित 'दिक्पट ६ शूद्र मुक्ति चौरासी बोल' नामक ग्रन्थों के प्राधारसे हुई प्रतीत होती १० वस्त्र-सहित पुरुष-मुक्ति है। पर वर्तमानमें ये दोनों ग्रन्थ मेरे सन्मुख न होनेसे ११ गृहस्थ वेषमें मुक्ति उपापोह नहीं किया जासकता । दि० श्वे. भेदोंकी १२ साभरण एवं कछोटे वाली प्रतिमापूजन उस्कृष्ट संख्या ७१६ होनेका भी उल्लेख मैंने कहीं देखा १३ मुनियोंके १४ उपकरण है, पर वे कौन कौनसे हैं ? उनकी सूची देखने में नहीं १४ मल्लिनाथ तीर्थंकरका स्त्री लिंग आई। १५ पात्रमें मुनि श्राहार बीकानेरके शान-भंडारों एवं हमारे संग्रहमें भी १६ एकादश अंगोंकी विद्यमानता दि० श्वे० भेदोंकी कई सूचियाँ मेरे अवलोकनमें प्राई १७ द्रौपदी के पाँच पति हैं। उनमें एक दो प्रतियोंमें तो भेदोंकी संख्या ८४ लिखी १८ वसुदेवके ७२ हजार स्त्री है,पर अन्य प्रतियों में कई बातें अधिक भी लिखी गई हैं। १६ भरतचक्रवर्तीको अारिसाभवनमें केवलज्ञान अतः उन सबके आधारसे जितने भेदोका विवरण प्रत २० भरत चक्रीके सुन्दरी स्त्री होता है इनकी सूची नीचे दीजाती है २१ सुलसाके ३२ पुत्रोंका एक साथ जन्म इन भेदोंको मैंने तीन भागोंमें विभक्त कर दिया है २२ ऋषभदेवकी विवाहिता सुमंगलाके ६६ पुत्र-जन्म (१) जिन बातोंको श्वेताम्बर मानते हैं, दिगम्बर २३ भगवानकी १७ प्रकारी या अंग अग्र, भावपजा . नहीं मानते; (२) जिन्हें दिगम्बर मानते हैं; श्वेताम्बर २४ समुद्रविजयकी माद्री बहिन दमघोषकी स्त्री थी नहीं मानते , (३) वस्तु दोनों मानते हैं पर उनके २५ प्रभु मुनिसुव्रतने अश्वको प्रतिबोध दिया प्रकासेंकी संख्यामें एक दूसरेकी मान्यतामें तारतम्य या २६ अकर्म भूमिके युगलिक हरि-हरिणीसे हरिवंश चला भेद है। २७ संघादिके लिये मुनि युद्ध भी करे (१) वे बातें जिनको श्वेताम्बर मानते हैं २८ मल्लिनाथजीका नीलवर्ण २६ भगवान्की दादको देव-इन्द्र स्वर्ग लेजाकर पूजे पर दिगम्बर नहीं मानते: ३० देव मनुष्य-स्त्रीसे संभोग कर सके १ केवलीका कवलाहार ३१ उपवासमें औषध अफीमादिका ले सकना २ केवसीका निहार ३२ बासी पक्वान भोजन (जल रहित पक्वान बासी नहीं) ३ केवखीको उपसर्ग अशुभ वेदनीय कर्मोदय ३३ शूद्र-कुम्हार आदिके घरसे मुनि श्राहार ले सके .४ भोग भूमियोंका निहार ३४ चमड़ेकी पखालका जल पी सकना ५ त्रिपाधिशलाका पुरुषोंका निहार ३५ महावीरका गोपहार ६ ऋषभदेवका सुमंगलासे विवाह ३६ महावीरकी प्रथम देशना निष्फल
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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