________________
A. IT
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक्
परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान-वीर-सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा, जि.सहारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० ब० नं. ४८, न्यू देहली प्रथम श्रावण शुक्ल, धीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १९६६
वर्ष २
समन्तभद्र-शासन लक्ष्मीभृत्परमं निरुक्तिनिरतं निर्वाणसौख्यप्रदं कुज्ञानातपवारणाय विघृतं छत्रं यथा भासुरम् । सज्जानैनययुक्तिमौक्तिकफलैः संशोभमानं परं बन्दं तबतकालदोषममलं सामन्तभद्रं मतम् ।।
-देवागमवृत्ती, बसुनन्दिसैद्धान्तिका श्रीसमन्तभद्रके उस निर्दोष मतकी-शामनकी-मैं बन्दना करता हूँ-उसे श्रद्धा-गुणातापूर्वक प्रणामाञ्जलि अर्पण करवाहूँ-जो श्रीसम्पन्न है, उत्कृष्ट है, निरुक्ति-परायण है-व्युत्पत्तिविहीन सब्दोंके प्रयोगसे प्रायः रहित है-, मिथ्याज्ञानरूपी पातापको मिटानेके लिये विधिपूर्वक धारण किये हुए देदीप्यमान छत्रके समान है, सम्यग्ज्ञानों सुनयों तथा सुयुक्तियों रूपी मुक्ताफलोंसे परम सुशोभित है, निर्वाण-सौख्यका प्रदाता है और जिसने कालदोषको ही नष्ट करदिया था-अर्थात् स्वामी समन्तभद्र मुनिकं प्रभावशाली शासनकाल में यह मालूम नहीं होता था कि भाजकल कलिकाल बीत रहा है।