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अनेकान्त
[आषाढ़,वोर-निर्वाण सं०२४६
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स्थानके लिए पजे ! पिछली दोनों घटनाएँ भान प्रधान सचिवका नाम था-'अपदेव !' यह थे स्वप्न-अस्तित्वसे अधिक महत्त्वशालिनी न थीं ! वह इस 'चार्वाक मत' के अनुयायी (वाममार्गी) ! या गों लिए कि माज वैसी ममंगल-कल्पना करना जहाँ नैतिक कहिये महाराजके पालित-धर्मसे ठीक उबटे ! १६ की कायरता थी, वहाँ इस-सुन-नवीनताके प्रति भवि- तरह, एकका मुंर इधर तो दूसरेका उधर ! महाराजकी श्वसनीय भावना भी !
अटूट श्रद्धा-भक्ति जैन-धर्मके लिए थी तो मंत्री महोदयउपाकी सुनहरी-किरणोंसे मुक्ति होनेवाले कोकनद- की चाक-मतके लिए !"निभी चली जाने की वजह की भॉति महाराजका मुख माज प्रफुल्लित है ! उनके थी-महाराजकी पशस्विनी न्याय-प्रियता ! वह प्राप्तहृदयमें एक विचित्र-प्रकारको मानन्द-मन्दाकिनी अधिकारों का दुरुपयोग करनेके परमें मथे ! नहीं हिलोरें ले रही है ! स्वदेश-प्रेम, स्वपरिवार-मिलन, और किसीको धर्म-परिवर्तन करने के लिए मजबूर करना प्रिय-भावास सभी हदयमें एक सुखद-भान्दोलन मचा उनकी मादत थी ! उनके शासनकी विशेषता साम्परहे हैं ! प्रति-पण वृद्धिंगत होने वाली उत्सुकता- दायिकता न होकर, न्याप थी ! वह एक धर्मात्मा, प्रजा माकर्षण-है उसकी सहकारी !
पर पुत्र-सी ममता रखनेवाले, म्याषी शासक थे ! पर.....१
___ उनकी राज्य-सीमाके बच्चे-बच्चे तकके हृदयमें यह कैसी दुर्घटना ? –कैसा इन्द्र-जाल ? ... उनके प्रति प्रेम था, श्रद्धा थी, और था-विश्वास ! भाश्चर्य-जनक!
माज की तरह राज-मोह, मसहयोग, सत्याग्रह और नजदीक ही था कि महाराज की सवारी दुर्ग-द्वारमें दमन, दुर्नीति काममें खानेकी तब किसीको जरूरत प्रवेश करती, कि उसी समय यह ध्रुव, विशाल, वज्र- ही महसूस न होती थी ! सुख-चैनके थे वे दिन ! तुल्य प्रवेश-मार्ग धराशायी हो जाता है ! धूल के गुब्बारे हाँ, तो मंत्रीजीकी भज्ञा राजा साहिबकी धार्मिउड़ते हैं, मोटे-मोटे पत्थर-पतझड़ की तरह जमीन कताओंका क्या शान? उनका उत्तर अपने निजी रष्टिपर भा रहते हैं, मार्ग अविरुद्ध हो जाता है ! महाराज- कोण द्वारा ही तो हो सकता था, वही हुमा !"यह को लौटना पड़ता है ! लौटते हैं-उदास-चित्त, विस्मय, राजनैतिक-समस्या न थी जो मंत्रीजीके परामर्श द्वारा विज्ञासा और विविधि-प्रान्तियोंका बोझ लेकर ! शीघ्र निर्णय पा जाती!
अहिंसा-धर्मकी मान्यतापर पूर्ण विश्वास रखने महाराज ! यह एक बाधा है-देवी-वाघा ! पापवाले, साधु-प्रकृति महाराज सुधर्म शिविरमें भाकर को उचित है कि इसका निराकरण करें। नहीं, यह माकस्मिक घटनामों द्वारा सृजित वस्तु-स्थिति पर अधिक भी अनिष्ट करदे तो भारचर्य की बात नहीं !' विचार करते हैं !...
'फिर उपाय..?" 'भापकी रायमें इन देवी-घटनाओंका क्या प्रयो- उपाय यह है कि आप एक पुरुषकी माहुति देकर जन हो सकता है? और अब, ऐसी विपरीत परिस्थिति- देवीको प्रसन्न करें ! बिना ऐसा किए मेरा अनुमान है में मुझे क्या करना चाहिए ?'-महाराजके दुखित कि संकट दूर न हो सकेगा ! दुर्ग-द्वारका, भापके चित्तसे निकला!
प्रवेश करनेकी चेष्टा करते ही, रह पहना देवीकी साता