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________________ MA अहिंसा परमोधर्मः श्री. भगवत् जैन y umrumum *MEMIZMrumrum जब नारकीयता नष्ट हो जाती है, मनोचन जागरित हो, वीरत्वकी वांछनीय-सत्क्रान्तिका सन्देश : एं सुनानेके लिए अग्रसर हो जाता है, अनुदारता अवसान गृहण कर लेती है और भ्रातृत्व समग्र , संसारमें व्यापक रूपसे फैल जाता है,तभी मानवीय-कोमलता पुकार उठती है-'अहिंसा परमोधर्मः !'' NL-IN-IN-IN-IN-WL-ININ-INLaws [] पहिलेकी जीर्ण-तर इमारतकी तरा-सएहर बनपतिद्वन्दी 'महाबल' को पराजितकर महाराज-सुधर्म गया ! स्वयं महाराज भी इस माकस्मिक घटनासे अपनी राजधानी-पंचाल देशान्तर्गन वरशक्ती- प्रभावित हुए बगैर न रह सके ! थोदा खीझे भी, नगरी-को लौटे । जैसे ही दुर्ग-द्वारमें प्रवेश करने लगे, मल्लाये भी ! पर यह सोच-बात किसीके हाथकी कि अचानक वह विशाल दुर्ग-द्वार ढह पड़ा ! महाराज नहीं, ग़रीब कारीगरोंको दोषी ठहरामा अन्याय है!' भीतर न जा सके ! लौट भाए ! प्राकारके बाहर ही ...चुप हो रहे ! शिबिर खड़े किए गए। उस दिन वहीं विश्राम निश्चित माशा हुई–'चतुर-से-चतुर शिल्पकारों द्वारा ठहरा। आमूलदुर्ग-द्वार बनवाया जाए. मोटे मोटे पत्थर, बोहेकी दूसरे दिन फिर नगर-प्रवेशके लिए महाराजकी सलाखें और क्रीमती-मसालोंसे, या जिस प्रकार सम्भव सवारी चली । दुर्ग-द्वारकी आज आवश्यक-मरम्मत हो हो उसकी दृढ़तापर-मज़बूतीपर-ध्यान रखा चुकी थी ! स्वप्न में भी कोई यह सम्भावना नहीं कर जाए !'... सकता या,कि भाज भी कोई घटना घट सकेगी ! मृतक माशा. · पालनमें क्या देर !-पूर्ण-सतर्कताके प्राय जीर्णताके भीतर संजीवनी-नवीनता स्थान पा संरक्षकत्वमें कार्य प्रारम्भ हुमा और थोदेही समयमें, चुकी थी इसलिये! अगणित-श्रमिकोंके भविश्राम-परिश्रमने, उसे बना कर लेकिन तब लोगोंके भाश्चर्यका ठिकाना न रहा, तैय्यार करदिया ! ऐसा-जिसकी मजबूती पर विश्वास जब उन्होंने प्रत्यक्ष देखा कि जैसे ही महाराज दुर्ग-द्वारके किया जा सके, जिसकी भव्यता पर पुष्टि चुम्बककी समीप पहुंचे कि वह एक दम टूट पड़ा ! एक-पण तरह-अमिन बन सके ! पहिले जिसके मजबूत होनेकी चर्चा थी, वही सदियों तीसरी बार स-दल-बल महाराज अपने निवास
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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