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________________ अहिंसाकी समझ मन शेण MORE (ले०-श्री किशोरखामजी मरास्वाना] क बार मेरे एक मित्र अपनी पत्नी और S लड़कोंके साथ नदी पर गये थे । साथमें मैं । और दूसरे भी मित्र थे । मुझे और मित्र-पत्नीको नहाना नहीं था, इसलिये हम किनारे पर बैठकर देखते रहे । दूसरे भी दो-चार देखने वाले थे । और सब नदीमें उतरे । मित्रके लड़कोंमेंसे एक तैरना नहीं जानता था, और उस दिन कुछ | सीखनेकी वह कोशिश करता था । लड़का १६१७ वर्षका था. और मेरे मित्र उसे ध्यान देकर सबक़ दे रहे थे । अगर कुछ गहरे पानीमें ले जाते थे, तो ठीक सम्हाल लेते थे। दूसरे सब गहरे तैरनेवालोंके मजे पर लगा था, तब माताका ध्यान पानी में जाकर नदीमें तैरनेका मजा लूट रहे थे। इस लड़केकी हलचल पर ही जमा हुआ था। थोडी देर तक लड़केको अभ्यास कराके मेरे दूसरे देखने वालों और इस देवीमें क्या भेद मित्र भी उसे कम पानीमें छोड़कर दूसरोंके साथ था? क्यों उसका ध्यान इस लड़केके नीरस प्रयत्नों होलिये । लड़का अकेला अपने आप थोड़ा थोड़ा पर ही एकाग्र था ? दूसरोंकी तरह वह क्यों दूरके तैरनेकी कोशिस कर रहा था । घाटपरके देखने तैरनेवालोंकी हिम्मतको नहीं देखती थी? वालोंका ध्यान नदीमें मजा करने वालोंकी ओर अगर कोई देवी इसे पढ़ेगी तो वह कहेगी, यह लगा हुआ था । लेकिन, इसमें दो आँखोंका क्या सवाल है ? यह तो विल्कुल स्वाभाविक है ! अपवाद था। ये दो आँखें तो उस लड़के पर ही उसकी जगह हम और हमारा लड़का वहाँ होता, तो लगी हुई थीं। 'देखो' वहाँ पानी ज्यादा है', वहाँ हमारी दशा भी वैसी ही होती हम तो समझती ही जरा सम्हलो', 'अरें' इस बाज़ आजाओ ना !- नहीं कि इसमें सवाल उठाने योग्य कौनसी चीज है ? 'कैसा बैवकूफ है ! कहा कि उस बाजू नहीं जाना लेकिन, सवाल तो यों उठता है कि तब सब चाहिये, फिर भी उसी बाजू चला जाता है !- देखनेवालोंकी मनोदशा वैसी क्यों नहीं थी ?इस तरहकी सूचनाओंकी धारा माताजीके मुखसे जवाब यह है कि दूसरे देखने वाले सिर्फ आँखोंसे निकला करती थी। लड़का कुछ घबराता नहीं था। देखते थे, हृदयसे-और माताके हृदयसे नहीं उसे यह ग़रूर भी था कि अब तो मैं जवान हूँ, देखते थे । इसलिये अांखोंको जो मजेदार बच्चा नहीं हूँ, मैं अपने आपको अच्छी तरह मालूम होता था, उस ओर उनका मन भी खिंचा सम्हाल सकता हूँ , और माता फिजूल ही चिंता जाता था । माताकी दशा अलग थी। उसकी करती है और टोका करती है। लेकिन, माता अांखें स्वतंत्र नहीं थीं । वे उसके हृदयसे बँधी लड़केकी नजरसे थोड़े ही देखती थी ? उसका हुई थी और वह हृदय इस समय अपने नौसिखुए पति वहाँ तेरता था। बड़ा लड़का भी तैरता था,वे लड़के पर प्रेमसे चिपका हुआ था। मध्य-प्रवाहमें थे। वास्तवमें यदि कुछ जोखिम था अगर पाठक माता और दूसरे दर्शकोंके तो उन्हें था। पर, वह जानती थी कि वे दोनों हृदयके इस भेदको समझ सकें, तो वे अहिंसाको तैरनेमें कुशल हैं, यह लड़का नहीं है । वह समझ सकेंगे। सब प्राणियोंकी ओर उस हृदयसे सोलह सालका भले ही हुआ हो, उसकी दृष्टिमें देखना, जिस हृदयसे वह माता अपने लड़केकी इस पानीमें वह साल भरका बच्चा मालूम होता ओर देखती थी, इसीम अहिसाकी समझ है। था । इसलिये जब दूसरे देखने वालोंका ध्यान उन (हिन्दुस्तान गान्धी अङ्क १९३८)
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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