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अनेकान्त
वीर-निर्वाण सं०२४६५
मा ने सुना तो कलेजा थाम कर रह गई। कहलाता है, तब एक धेश्याका भी उसके सेवन उसका पापमय जीवन बाइस्कोपकी तरह नेत्रोंके करनेसे कल्याण क्यों नहीं हो सकता ? फिर सामने आगया । वह नहीं चाहती थी कि इस यह तो वेश्या-पुत्र है, इसने तो कोई पाप किया सरल हृदय बालकको पापका नाम भी मालूम भी नहीं। पाप यदि किया भी है तो इसकी माताने होने पाए । इसलिये उसके होश सम्हालनेसे पूर्वही किया है। उसका दण्ड इसे क्यों ?" वह अपना सुधार कर चुकी थी। उसे अपने पुत्र- आचार्यकी वाणीमें जादू था, सबने प्रेम विका भविष्य उज्ज्वल करना था। अतः वह बोली- 'भोर होकर अज्ञात-पुत्रको गलेसे लगा लिया। "जाओ बेटा ! कहना जिस समय मैं उत्पन्न
(२४) हुआ था मेरे अनेक पिता थे, उन सबकी अनु- किसी पुस्तकमें पढ़ा था कि, अमुक देशकी मति प्राप्त करना असम्भव है।"
जेलमें एक कैदी जेलरके प्रति विद्रोहकी भावना बालक सब कुछ समझ गया। किन्तु उसे रखने लगा । वह जेलरकी नाक-कान काटनेकी अपने लक्षका ध्यान था । दौड़ा हुआ आचार्यके तजवीज़ सोच रहा था कि जेलरने उसे बुलाया पास गया और एक सांसमें माँका सन्देश कह और कमरा बन्द करके उससे अपनी हजामत सुनाया।
बनवानी शुरू करदी। हजामत बनवा चकने पर .. आचार्य गद्गद् कंठसे बोले-"वत्स ! जेलरने कहा-"कमरा बन्द है ऐसे मौके पर परीक्षा हो चुकी । तू सत्यवादी है इसलिये आ, तू तुम मेरी नाक कान काटने वाली अभिलाषा भी धर्ममें दीक्षित होनेका अवश्य अधिकारी है। पूरी करलो, मैं कसम खाता हूँ कि यह बात मैं .. कुछ कुल जाति-गर्वोन्मत्त भक्त आचार्यके किसीसे न कहूँगा ।" जेलर और भी कुछ शायद इस कार्यकी आलोचना करने लगे। भला एक कहता मगर उसकी गर्दन पर टप टप गिरने वेश्या-पुत्र और वह धर्म में दीक्षित किया जाए। वाले आँसुओंने उसे चौंका दिया। वह कैदीका असम्भव है, ऐसा कभी न हो सकेगा। हाथ अपने हाथों में लेकर अत्यन्त स्नेहभरे स्वरमें ___ क्षमाशील प्रभु उनके मनोभाव ताड़ गये।बोले- बोला- "क्यों भाई ! क्या मेरी बातसे तुम्हारे "विचारशील सज्जनों ! पापीसे घृणा न करके कोमल हृदयको आघात पहुँचा ! मुझे माफ करो उसके पापसे घृणा करनी चाहिये । मानव जीवनमें मैंने गलतीसे तुम्हें तकलीफ पहुँचाई"। अभागा भूल हो जाना सम्भव है । पापी मनुष्यका प्राय- कैदी सुबक सुबक कर जेलरके पावोंमें पड़ा रो श्चित द्वारा उद्धार हो सकता है। किन्तु जो जान रहा था, जेलरके प्रेम, विश्वास और क्षमा भावके बूझ कर पाप कर्ममें लिप्त हैं, अपना मायावी रूप आगे उसकी विद्रोहाग्नि बुझ चुकी थी । वह पाकर लोगोंको धोका देते हैं, एक पापको आँखोंकी राह अपने हृदयकी मनोवेदना व्यक्त कुपानेके लिये जो अनेक पाप करते हैं; उनका कर रहा था। उद्धार होना कठिन है । जब धर्म पतित-पावन