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________________ avasasesasastestaaslesaleHESEBESIDERMINATANAMATEMENasasassica [ले०-अयोध्याप्रसाद गोयलीय] SEORARARINNARINNARRARB ANANCP (२२) ____ "फिर इसका कोई उपाय ?" महात्मा ईसा बैठे हुए दीन-दुखी और पतित "केवल अपने पिताका परिचय कराने पर प्राणियोंके उत्थानका उपाय सोच रहे थे कि उनके दीक्षित हो सकोगे।" कुछ अनुयायी एक स्त्रीको पकड़े हुए लाए और “दीक्षित हो सकूँगा ! किन्तु पिताका परिचय बोले-"प्रभु ! इसने व्यभिचार जैसा निंद्य कर्म कराने पर !! ओह !!! मैंने तो उन्हें आजतक नहीं किया है। इसलिये इसके पत्थर मार मार कर देखा भगवान् ! दीनबन्धु ! क्या पितृ-हीनको प्राण लेने चाहियें।" महात्मा ईसाने अपने अनुया- धर्म रत होनेका अधिकार नहीं है ? सुना है धर्मइयोंका यह निर्णय सुना तो उनका दयालु हृदय भर का द्वार तो सभी शरणागत प्राणियोंके लिये खुला आया, वे रुंधे हुए कंठ से बोले-"आपमेंसे जिस हुआ है।" ने यह निंद्य कर्म न किया हो, वही इसके पत्थर "वत्स! तुम्हारा कथन सत्य है । किन्तु तुम मारे " महात्मा ईसाका आदेश सुना तो मानो अभी सुकुमार हो, इसलिये तुम्हें दीक्षित करनेसे शरीरको लकवा मार गया। नेत्र जमीनमें गड़ेके पूर्व उनकी सम्मतिकी आवश्यकता है। गड़े रह गये । उनमें एक भी ऐसा नहीं था, जिसके १५ वर्षका बालक निरुत्तर हो गया। उसके पर-स्त्रीके प्रति कुविचार स्वप्नमें भी उत्पन्न न फूलसे गुलाबी कपोल मुझी जैसे गये। सरल हुए हो । सारे अनुयायी उस स्त्रीको पकड़े हुए मुँह नेत्रोंके नीचे निराशाकी एक रेखा-सी खिंच गई लटकाये खड़े रहे । तब महात्मा ईसाने करुणा भरे और स्वच्छ उन्नत ललाट पर पसीनेकी बून्द स्वरमें कहा-"मुमुक्षुओ! पतितों, दुराचारियों झलक आई । उसका उत्साह भंग हो गया। और कुमार्गरतोंको प्रेमपूर्वक उनकी भूल सुझाओ घर लौट कर वह अपराधीकी तरह दर्वाजेसे वे तुम्हारी दयाके पात्र हैं । औरोंके दोष देखनेसे लग कर खड़ा हो गया। उसकी स्नेहमयी मां पुत्र पूर्व अपनी तरफ भी देख लेना चाहिये ।" का मुर्माया हुआ चेहरा देख सिर पर प्यारसे (२३) हाथ फेरते हुए बोली-"क्यों मुन्ने क्या दीक्षित "प्रभू क्या मुझे दीक्षित नहीं किया जायगा" नहीं हुए ?" "नहीं।" "नहीं" "इसका कारण ?" "क्यों?" “यही कि तुम अज्ञात पुत्र हो। "वे कहते हैं पिताकी अनुमति दिलाओ।"
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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