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________________ Regd. No. 1. 4328: वीर सेवामन्दिरको सहायता र साल में पीर सेवा मन्दिर सरसावाको उसके कन्या विद्यालयको सहायतार्थ, निम्न सज्जनोंकी ओर से ७४), की सहायता पास गई है । जिसके लिये दातार महाशय धन्यवादाक पात्र हैं:10 श्रीमती प्रसन्नीदनी धम्पन्नी यो संगतस्यजी जैन जा इन्द्रसेनजी जैन पानीपत मापन ला स्वसदन हरडस मुलतानपुर निः सहारनपुर कलाविद्यालय जैन गाडगीय (पुत्री के विवाह संस्कारको सीमी को देख कर उसकी सहायता) | म ला याचन्द्र सुपुत्र लामिहनलाल जी जैन नामा । सलताना कि सहारनपरकी एक भई विजन महिला जिला समानावित्री किरणमाला के विवाहक जिन्नान अमना नाम देना नहीं पातर कन्या राशीम कन्या विद्यालयको । विद्यालय लिय) मुमिनवर्तदास जैन मैनेजर जैन हाईस्कल पानात । अली मुसंडीलाल शिवचन्दनी जैन, आफमालयद अपने पुत्र चिरंजीय देवकुमारके विवादको । बिजनौर मंत्र विवाह का प्रयास किया जाममा करूपचन्दजी जैन सांगीय पानीपत संविधानमा नायला नुसढीलान शिखरचन्द जोन उक्त सहायता के अतिरिक्त वीरसेना मन्दिरको लायनरी के लिये लोके लायक २०, मूत्यकी अच्छी तुमकी लकड़ी भेजने का वायदा किया है, जिसके लिये वे और AL अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिर सरल जन-प्रथमाली जबलपुर द्वारा प्रकाशित सरळ-जन बम पर लोकमत कामतापसावणी गुना उनकी भाषा सुबोध और मनोरंजक इन बालकोंको जैन धर्मको शिक्षा । बितेक लिपिक अहिलीयातिल होगी । लेखकका परिश्रम प्रसासनीय हैजयावादावार्थ वा कुन्दनलालस्यायनी मनसंस्थानाम इस प्रकार के आलोपयोगी साहित्यकी भारी कमी भी इनके पठनसे मेरी भारणा है कि बात का धार्मिक संस्कार स्थायी व श्रद्धा वलर होगी। वाणीभूषण २० तुलसी रामजी काव्यातीयवारी भागों के पाटोका संकलन बड़ा ही हृदयमाही हुया है। न्यायाचार्य का माणिकचन्दजी वाचा भाग जना सिमाके लिये प्रचपत्रोत है। जैन पाठशालाग्राम इसको पठन पाठन अवश्य होना । पाहिये । शास्तिकता और जैन धमकि संस्कार हनों कुछ करकर भारत में है। मध्य में पाठपयोगी चित्रा को देकर जाने सर्व में सुगन्धिका विमान कर दिया है। सतर्क युगतरषिणी जैनपाटयाला के प्रथा यासक व साहित्याध्यापक श्रीमान १० दयावखजी न्यायत्तीयं च १५ प्रमालालजी साहित्याचार्य नारी । गोको रखना अच्छी है । सरलताका कारण त्यांना रखा गया है। प्राशा है। इनसे अजेन जाधीको नाइयां दूर होगी और इस मोर उनकी अभिवच बढ़ेगी। लिहान में नन्दलालजी गायी ने बालकोको जैन धर्मावला सरलता से ज्ञान कराने के लिये जो अपर्व आयोजन किया है वह अत्युपयोग है । यदि तमाम विद्यालय, स्कन कीर यादवाला माम, उक्त पुस्तक काल में इसकी माने तो जैन भनेतर पालकोका बड़ा काम हो । माल पाठप पुस्तकों की अपेक्षा उक्त पुस्तक बाल को के लिये बहु उपयोगी है। अपनी अपनी सम्मति मैजिये । Ca
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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