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________________ ४७४ अनेकान्त [ज्येष्ठ वीर निर्वाण सं०२०६५ भाषाढपौर्णिमास्या तु युगनिष्पत्तिश्च श्रावणे । जाता है, जब यह मालूम होता है कि इसी श्रावणप्रारम्पः प्रतिमञ्चन्द्रयोगाभिजिदि कृष्णके ॥ कृष्णा प्रतिपदाको प्रातःकाल सूर्योदयके समय अभि -लोकविभाग, ७, ३६ जित नवत्रमें ही श्रीवीर भगवान के शासनतीर्थकी त्रासाढपुराणामीए जुगणिप्पत्ती दु सावणे किरहे। उत्पत्ति हुई है, उनकी दिव्य वाणी सर्व प्रथम खिरी है अभिजिम्ह चंदजोगे पारिवदिवसम्हि पारंभो॥ और उसके द्वारा उनका धर्मचक्र प्रवर्तित हुश्रा है -त्रिलोकसार, ४११ जिसका साक्षात् सम्बन्ध सब जीवोंके कल्याणके साथ सावणबहुलपडिवए बालवकरणे अभीइनक्खत्त । है। मुख्तार श्री जुगलकिशोरजीके शब्दोंमें-"कृतज्ञता सव्वत्थ पढमसमये जुगस्स आइं वियाणाहि ॥ और उपकार-स्मरण आदि की दृष्टिसे यदि देखा -ज्योतिषकरण्डक, ५५ जाय तो यह तीर्थ प्रवर्तन-तिथि दूसरी जन्मादिएए उ सुसमसुसमादयो अद्धा विसेसा जुगादिणा तिथियोंसे कितने ही अंशोंमें अधिक महत्व रखती सह पवत्तंति जुगंतेल सह समप्पंति ।" है क्योंकि दूसरी पंचकल्याणक-तिथियाँ जब व्यक्ति -पादलिप्ताचार्य, ज्यो०कर०टी० विशेषके निजी उत्कर्षादिसे सम्बन्ध रखती हैं तब भरतैरावते महाविदेहेषु च श्रावणमासे कृष्णपक्ष यह तिथि पीड़ित, पतित और मार्गच्युत जनताके बालवकरणेऽभिजित्नक्षत्रे प्रथमसमये युगस्यादि उत्थान एवं कल्याणके साथ सीधा सम्बन्ध रखती विजानीहि । है, और इसलिये अपने हितमें मावधान कृतज्ञ -मलयगिरि, ज्यो० करण्डक टीका जनताके द्वारा खास तौरसे स्मरण रखने तथा सर्वेषामपि सुषमसुषमादिरूपाणां कालविशेषा- महत्व दिये जानेके योग्य है।" धवलसिद्धान्त और सामादि युग, युगस्य चादिः प्रवर्तते श्रावणमासि तिलोयपण्णत्तीमें, भ० महावीर के धर्मतीर्थकी उत्पत्तिका बहुलपक्ष प्रतिपदि तिथी बालवकरणे अभिजिनक्षत्र उल्लेख करते हुए, जो वाक्य दिये हैं वे इस प्रकार हैंचन्द्रेण सह योगमुपागच्छति । वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले । __ -मलयगिरि, सूर्यप्रशप्ति टीका, ६४ पाडिवद पुष्वदिवसे तित्थुप्यत्ती दु अभिजम्हि ॥ यदाषाढपौर्णमासीरजन्याः समनन्तरं । -धवल, प्रथमखण्ड प्रवर्तते युगस्यादि भरतैरावताख्ययोः॥ वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए । -लोकप्रकाश, ६३, १० ३८६ अभि जीराक्खत्तम्मि य उपपत्ती धम्मतित्थरस ॥ सावणाइया मासा, बहुलाइया पक्खा...रुदाइया -तिलोयपएणत्ती, १.६९ मुहुत्ता, बचाइया करणा, अभियाइया नक्खत्ता। इनमें बतलाया है कि श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको, -जम्बूदीवपएणत्ती जो कि वर्षका पहला महीना, पहला पक्ष, और प्रथम इन सब अवतरणांसे उक्त तिथिका ऐतिहासिक तथा दिन था, प्रातःकाल अभिजित नक्षत्र में श्री वीरप्रभुके प्राकृतिक महत्व स्पष्ट है और वह महत्त्व और भी बढ़ धर्मतीर्थकी उत्पत्ति हुई है-अर्थात् यह उनके शासन. नाता है अथवा यो कहिये कि असाधारण कोटिमें पहुँच की जन्मतिथि है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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