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________________ ......अनेकान्त. . .-. [ज्येष्ठ वीरनिर्वाण :०२६५ . . w. . जोरोंसे प्रचलित था, जिसके द्वारा खूनकी प्यासी अनेक तुम्हारे राज्यमें कहीं कोई मान ने निससे देषियोंकी स्थापना होकर उन पर मा अपना और अपने पिताक सामने पुत्र मरने लगा है। रामने सब ऋषियोंबाल बचोकी सुख शान्तिके वास्ते लाखों करोड़ों पशु को इकट्ठाकर पूछा,तो उन्होंने बताया कि सतयुगमें केवल मारमार कर चढ़ाये जाते थे, जिसके कुछ नमूने अब- ब्राह्मण ही तप कर सकते थे, त्रेतायुग आनेपर पापका तक भी इस हिन्दुस्तानमें मौजूद है। हृदयको कम्पा- ' भी एक चरण श्रागया, जिस पापके कारण क्षत्रिय भी यमान करदेनेवाली जिस निर्दयतासे ये बलियाँ अाज तप करने लगे, परन्तु उस युगमें वैश्यों और शद्रोका दक्षिण देशके अनेक मन्दिरों में होती है उसके कुछ अधिकार केवल सेवा करना ही रहा । फिर द्वापर युग नमूने अनेकान्त वर्ष दो की प्रथम किरणमें दिये गये हैं, आनेपर पापका दूसरा चरण भी-भागया, इस पापके उनसे तो यह बात अनुमानसे भी बाहर होजाती है और कारण वैश्य भी धर्मसाधन करने लगे, परन्तु शूद्रोंको यह खयाल पैदा होता है कि जब अाजकल भी यह हाल धर्म-साधनका अधिकार नहीं हुआ। परन्तु इस समय है तो श्री महावीर स्वामीके जन्म समयमें तो क्या कुछ न तुम्हारे राज्यमें किमी स्थानपर कोई शूद्र तप कर रहा है, होता होगा ? उस समय तो जो कुछ होता होगा, वहाँ इस ही महापापके कारण ब्राह्मणका यह पुत्र मर गया तक हमारी बुद्धि भी नहीं जासकती है । हाँ, इतना ज़रूर है । यह सुनकर श्रीराम तुरन्त ही विमानमें बैठ उस कहा जासकता है कि वह जमाना प्रायः मनुष्यत्वके शूद्रकी तलाशमें निकले; एक स्थान पर शम्बूक नामका बाहरका ही. जमाना था, मांसाहारी फरसे क्रूर पशु भी शूद्र तपस्या करता हुआ मिला, श्री रामचन्द्र जीने इस प्रकार तड़पा तड़पा कर अपने शिकारको नहीं तुरन्तही तलवारसे उसका सिर काट दिया जिसपर देवमारता है जिस प्रकार कि आजकल दक्षिण भारत के कुछ ताोंने धन्य धन्य कहा और ब्राह्मणका पुत्र भी जिन्दा लोग अपनी और अपने बालबच्चोंकी सुख शान्तिके वास्ते करदिया। ऐसी दुर्दशा उस समय शूद्रोंकी वा धर्मकी किसी किसी देवीको प्रसन्न करनेके अर्थ पशुओंको हो रही थी, समाज-विज्ञान आदि अनेक ग्रंथोंसे यह भी तड़पा तड़पा कर मारते हैं, किन्दा पशुत्रोंका ही खून पता लगता है कि उस समय यदि भूलसे भी वेदका चूस चूसकर पीते हैं, अाँते निकाल कर गले में डालते कोई शब्द किसी शूद्रके कानमें पड़ जाता था तो उसके है, उनके खून में नहाते हैं: उन्हींके खूनसे होली खेलत कान फोड़ दिये जाते थे, धर्म की गंध तक भी उनके और अन्य भी अनेक प्रकारकी ऐसी ऐसी क्रियाएँ पास न पहुँचने पावे, ऐसा भारी प्रबन्ध रखा जाता था। करते हैं जिनसे बलि दिये जानेवाले पशुकी जान बहुत इस ही प्रकारक धार्मिक जुल्म स्त्रियों पर भी होते थे, देर में और बहुत ही तड़प तड़प कर निकले !! वे चाहे ब्राह्मणी हो वा क्षत्रिया उनको कोई भी अधिकार ___ उस समय तो पशुओंके सिवाय मनुष्यों पर भी किसी प्रकारके धर्म-साधनका नहीं था, यहाँतक कि धर्मके नाम पर भारी जुल्म होते थे, बाल्मीकि रामायण उनके जात कर्म आदि संस्कार भी बिना मन्त्रों के ही उत्तर कांड सर्ग ०३से ७६के अनुसार भी रामचन्द्रके होते थे । राज्यमें एक बढ़े ब्राह्मणका बालक मर गया, जिसको - लेकर षह रामके पास आया और उलाहना दिया कि मनस्मृति इ.१८ .. ...
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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