SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ...... - [ज्येष्ट, वीर-निर्भ कहा है-'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' । उसी बातको थे। उनके बाँचने और ग्रहण करनेकी शकि कुरानशरीफमें दूसरी तरह कहा है कि ईश्वर एक अगाध थी। पुस्तकका एक बारका बाँचन इन ही है और वही है, उसके बिना और दूसरा कुछ पुस्तकोंके रहस्य जाननेके लिये उन्हें काफी था । नहीं । बाइबिलमें कहा है कि मैं और मेरा पिता कुरान, जंदअवेस्ता आदि पुस्तकें भी वे अनुवादके एक ही हैं। ये सब एकही वस्तु के रूपांतर हैं । परन्तु जरिये पढ़ गये थे। इस एक ही सत्यके स्पष्ट करने में अपूर्ण मनुष्योंने वे मुझसे कहते थे कि उनका पक्षपात जैनअपने भिन्न-भिन्न दृष्टि-बिन्दुओंको काममें लाकर धर्मकी ओर था। उनकी मान्यता थी कि जिनाहमारे लिये मोहजाल रच दिया है; उसमेंसे हमें गममें प्रात्मज्ञानकी पराकाष्ठा है। मुझे उनका यह बाहर निकलना है। हम अपूर्ण हैं और अपनेसे विचार बता देना आवश्यक है । इस विषयमें कम अपूर्णकी मदद लेकर आगे बढ़ते हैं और अपना मत देने के लिये मैं अपनेको बिलकुल अनअन्तमें न जाने अमुक हदतक जाकर ऐसा मान धिकारी समझता हूँ। लेते हैं कि आगे गम्ता ही नहीं है, परन्तु वास्तव में परन्तु रायचन्द भाईका दूसरे धर्मोके प्रति ऐमो बात नहीं है । अमुक हदके बाद शास्त्र मदद अनादर न था, बल्कि वेदातके प्रति पक्षपात भी नहीं करते, परन्तु अनुभव मदद करता है। इसलिये था । वेदातीको तो कवि वेदांती ही मालूम पड़ते रायचन्द भाईन कहा है :-- थे । मेरी साथ चर्चा करते समय मुझे उन्होंने कभीभी यह नहीं कहा कि मुझे मोक्ष प्राप्ति के लिये प पद श्रीसर्वशे दीई ध्यानमा, किसी खाम धर्मका अवलंबन लेना चाहिये । मुझे कही शक्या नहीं ने पद श्रीभगवंत जो । अपना ही आचार विचार पालनेके लिये उन्होंने एह परमपदप्राप्तिर्नु क ध्यान में, कहा । मुझे कौनसी पुस्तकें बाँचनी चाहिये, यह गजावगर पणहान मनोरथ रूपजो प्रश्न उठने पर, उन्होंने मेरी वृत्ति और मेरे बचइसलिये अन्तमें तो आत्माको मोक्ष देनेवाली पनके संस्कार देखकर मुझे गीताजी बाँचने के लिये श्रात्मा ही है। उत्तेजित किया; और दूसरी पुस्तकोंमें पंचीकरण, इस शुद्ध सत्यका निरूपण रायचन्द भाईने मणिरत्नमाला, योगवासिष्ठका वैराग्य प्रकरण, अनेक प्रकारों से अपने लेखों में किया है। रायचन्द काव्यदोहन पहला भाग, और अपनी मोक्षमाला भाईने बहुतसी धर्म पुस्तकों का अच्छा अभ्यास किया बाँचनेके लिये कहा।। था। उन्हें संस्कृत और मागधी भाषाके समझनमें रायचन्द भाई बहुत बार कहा करते थे कि जरा भी मुश्किल न पड़ती थी। उन्होंने वेदान्तका भिन्न भिन्न धर्म तो एक तरहके बाड़े हैं और उनमें अभ्यास किया था, इसी प्रकार भागवत और गीता- मनुस्य घिर जाता है। जिसने मोक्ष प्राप्ति ही पुरुजीका भी उन्होंने अभ्यास किया था । जैनपुस्तके षार्थ मान लिया है, उसे अपने माथे पर किसी भी तो जितनी भी उनके हाथमें आती, वे शंच जाते धर्मका तिलक लगानेकी आवश्यकता नहीं।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy