SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [ कार्तिक, वीर निर्वाण सं० २४ ६४ ऊँची अवस्थावाले संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं, उनकी भी ऐसी यही हाल अन्तरधीपजोंका समझ लेना चाहिये, जो नीच अवस्था है कि उनमें न तो आपस में बातचीत मोटे रूप में तियचोंके ही समान मालूम होते हैं । उनके करनेकी ही शक्ति है, न उपदेशके सुनने-समझनेकी, अस्तित्वका पता आजकल मालूम न होनेसे और शास्त्रों कोई नया विचार या कोई नई बात भी वे नहीं निकाल में भी उनका विशेष वर्णन न मिलनेके कारण उनकी सकते । इसीसे वे अपने जीवनके नियमों में भी कोई बाबत अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । हा, उन्नति या परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। कौवा जैसा उनका नाम आते ही इतना अफसोस ज़रूर होता है कि घोंसला बनाता चला आ रहा है वैसाही बनाता है, पशु-समान अपनी पतित अवस्थाके कारण उनका चिड़ियाकी जो रीति है वह वैसा ही करती है, ययाकी नीचगोत्री होना तो ठीक ही है; परन्तु उनको मनुष्योंकी जातिमें जैसा घोंसला बनता चला आरहा है वैसा ही वह गणनामें रखनेसे मनुष्यजाति नाहक़ ही इस बातके बनाता है, शहदकी मक्खी और भिरड़ भी अपनी अपनी लिये कलंकित होती है कि उनमें भी नीचगोत्री जातिके नियमके अनुसार जैसा छत्तः बनाती आरही है होते हैं । वैसा ही बनाती है-रत्तीभर भी कोई फेर-फार नहीं हो सकता है। ऐसा ही दूसरे सब तियचोंका हाल है । इसी जान पड़ता है अन्तरद्वीपजोंको म्लेच्छ-मनुष्योंकी कारण उनकी बुद्धिको पश्चिमी विद्वानोंने Instinct कोटिमें शामिल कर देनेसे ही मनुष्योंमें ऊंच-नीचरूप of Bruit: अर्थात् पशु बुद्धि कहा है, जो बहुधाकर उभयगोत्रकी कल्पनाका जन्म हुआ है—किसी ने उसी प्रकार प्रवर्तती है जिस प्रकार कि पुद्गलपदार्थ अन्तरद्वीपजोंको भी लक्ष्य में रखते हुए, मनुष्यों में बिना किसी सोच समझ के अपने स्वभावानुसार प्रवर्तते सामान्यरूपमें दोनों गोत्रोंका उदय बतला दिया; तब हैं। ऐसी दशा में संज्ञी पंचेन्द्रिय तिथंच किस प्रकार दसरीने, वैसी दृष्टि न रखते हये, अन्तरद्वीपजोंसे भिन्न सप्ततत्त्वोंका स्वरूप समझकर सम्यग्दर्शन ग्रहण कर मनुष्यों में भी, ऊँच-नीचगोत्रकी कल्पना कर डाली है। सकते हैं और सम्यग्दृष्टि होने पर किस प्रकार श्रावकके अन्यथा, जो वास्तव में मनुष्य है उनमें नीचगोत्रका व्रत धारण कर पंचम गुणस्थानी हो सकते हैं ? यह बात उदय नहीं- उन्हें तो बराबर ऊँचा उठते तथा अपनी असम्भवमी ही प्रतीत होती है; परन्तु उनको जाति- उन्नतिकी ओर कदम बढ़ाते हुए देखते हैं । उदाहरण स्मरण हो सकता है अर्थात् किसी भारी निमित्त कारण के लिये अफ़रीकाकी पतितसे पतित मनुष्यजाति भी के मिलने पर पूर्वभव के सब समाचार याद आ सकते हैं, आज उन्नतिशील है...अपनी कहने, दूसरोंकी सुनने, जिससे उनकी बुद्धि जागृत होकर वे धर्म का श्रद्धान भी उपदेश ग्रहण करने, हिताहितको समझने, व्यवहार कर सकते हैं और नाममात्रको कुछ संयमभी धारण कर परिवर्तन करने, और अन्य भी सब प्रकारसे उन्नतिशील सकते हैं । इस प्रकार नीचगोत्रियोंकी अत्यन्त पतित होनेकी उसमें शक्ति है । उसके व्यक्तियोंमें Instinct अवस्था होने से उनमें सकल संयम की अयोग्यता पाई of Bruits अर्थात् पशुबुद्धि नहीं है, किंतु मनुष्योंजाती हैं और इसी कारण यह कहा गया है कि नीच- जैसा उन्नतिशील दिमाग़ है; तबही तो वे ईसाई पादगोत्री पंचम गुणस्थान से ऊपर नहीं चढ़ सकते हैं। रियों आदिके उपदेशसे अपने असभ्य और कुत्सित व्यव
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy