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वर्ष २, किरण ] सुभाषित
- अनन्त भी ऐसे ही तरीकेसे जाना जाता है। तात्मक कभी नहीं देता। हम युद्धिसे उस वस्तुसे परिचित हो सकते हैं जिसका जो गणितसम्बन्धी विषयों के लिये कहा गया है वहीं शान हमें इन्द्रियों-द्वारा कभी न होता। हम न-कुछ, सब प्रकारके तर्कोमें लाग किया जा सकता है। क्योंकि शून्य, परस्पर विरोधी, नास्तित्व, विचारातीत शब्द भी अब स या क ख ग की तरह चिन ही है तकका जिक्र करते हैं, हालाँकि ये शन्द उस बातको और उनके अर्थोके स्पष्ट शान के बिना भी तर्क की जा जनाते हैं जिसको मनमें कभी मूर्तिमान नहीं किया सकती है। जासकता बल्कि सिर्फ़ संकेतात्मक रूपमें जिसका विद्यार्थी या पाठकमें वस्तुओंके ज्ञान के बजाय शविवेचन किया जा सकता है।
ब्दोंको अपनानेसे अधिक बुरी आदत नहीं । धर्मग्रन्थमें __ अङ्कगणित और बीजगणितमें प्रधानतः चिन्हास्मक प्रात्मा, परमात्मा, पुण्य पाप, स्वर्ग नरक, संसार मोक्ष (संकेतात्मक) ज्ञान ही हमारा विषय होता है। क्योंकि यादिके बारे में पढ़ना और मनमें इन शन्दोंका भाव अङ्कगणितके किसी लम्बे प्रश्नमें या बीजगणितके स्पष्ट न हो तो इनका पाना शायद न पढ़नेसे बदतर है। सवालमें यह ज़रूरी नहीं है कि हम हर कदम पर न रसायन और । प्राकृतिक दर्शन शास्त्र के ग्रंथोसे संख्याओं और संकेतोंके अोंको मनके आगे उप- (जहाँ संकड़ों नये शब्द मिलेंगे जो कि उसे मात्र स्थित करें।
खोखले और उलझे निन्द दिग्याई देंगे) कोई विशेष लेकिन रेखागणितमें हम हर कदमकी सत्यताके लाभ उठा सकता है ताबने कि वह स्वयं प्रयोगोंका सहज (तात्कालिक ) शानसे तर्कना करते हैं; क्योंकि निरीक्षण और वस्तुश्रीका परीक्षण न करे। इस कारण हम विचाराधीन शक्लोकी शक्लोंको मनके सन्मुख हमें अपनी इन्द्रियोसे घस्तुत्रोंके रूप, गुण, और परिलाकर यह देखते हैं कि पाया उन शक्लोंमें इच्छित वर्तनांसे परिचित होने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ना विशेषताएँ वाकई हैं।
चाहिये, ताकि जिस भाषाका हम प्रयोग किया करते __ संकेतात्मक और तात्कालिक तरीकोंके तुलनात्मक हैं; जहाँतक सम्भव हो सहज, तात्कालिक रूपमें प्रयुक्त लाभोंके विषय में बहुत कुछ कहा जा सकता है । संके- की जा सके और हम उन बुद्धि विरुद्ध बातों और तात्मक कम श्रमसाध्य होता है और विशालतम रूपसे प्रमाणाभासीसे बच सकें जिनमें कि हम अन्यथा पड़ लाग होनेवाले उत्तर देता है। लेकिन तात्कालिकके सकते हैं। समान विषयकी स्पष्टता और उस पर अधिकार संके
सुभाषित ___ 'श्रात्म-संयमसे स्वर्ग प्रान होता है, किन्तु असंयत इन्द्रिय-लिप्सा रौरव नर्कके लिये खुली शाह-राह (खुला राज मार्ग) है।' ___'यात्म-संयमकी, अपने खजानेकी तरह रक्षा करो, उससे, बढ़कर इस दुनियाँमें अपने पास और कोई धन नहीं है।'
-तिरुवल्लुः र