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नया तो साफ़ होता है
या धुंधला; सुलझा या
ज्ञा उलझा; पर्याप्त या अपर्याप्त; तात्कालिक या
सङ्केतात्मक । पूर्ण ज्ञानको साफ़, सुलका, पर्याप्त और तात्कालिक होना चाहिये;यदि वह इन कसौटियोंमेंसे किसी एक पर ठीक नहीं उतरता तो वह न्यूनाधिक अपूर्ण है । इसलिये हम ज्ञानकी दर्जाबन्दी निम्नलिखित तरतीब से कर सकते हैं:
साफ़
ज्ञान पर लीबनिज
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[ श्री० नारायणप्रसाद जैन बी. एस सी . ]
सुलझा
पर्याप्त
ज्ञान
धु घला
उलझा
अपर्याप्त
सङ्केतात्मक
तात्कालिक
पूर्ण
हमारा किसी वस्तुका शान धुंधला है, जब कि हम उसको फिर शनाख्त न कर सकें और शेष दूसरी तमाम चीज़ोंसे उसे छाँट न सके । हमें गुलाबके और बहुतसे साधारण फूलोंका ज्ञान साफ़ है; क्योंकि हम उन्हें यकीनके साथ ( निश्चित रूपसे ) शनाख्त
• लोबनिज ( Leibnitz ) संसार का महान् गणितज्ञ और दार्शनिक ।
कर सकते हैं। जिन लोगोंसे हम प्रायः मिलते रहते हैं या अपने घनिष्ठ मित्रोंमेंसे किसीका हमारा शान साफ है; क्योंकि उन्हें जब कभी हम देखते हैं बिना हिकिचाहट, पूरे यक़ीनके साथ, उनकी शनाख्त कर लेते हैं। जौहरीको रत्नोंका शान साफ़ होता है, पर एक साधारण व्यक्तिको धुँधला ।
साफ़ ज्ञान उलझा हुआ होता है जबकि हम जानी हुई वस्तुके भागों और गुणोंमें तफ़रीक़ ( भेद ज्ञान ) न कर सकें, उसे सिर्फ अविभाजित रूप में जान सकें ।
हालाँकि कोई भी अपने मित्रको तत्क्षण जान जाता है और शेष तमाम लोगोंसे उसे छाँट सकता है, तो भी उसके लिये यह बता सकना बहुधा असम्भव होता है है कि वह उसे कैसे और किन चिन्होंसे जानता हैभले ही वह उसकी शक्ल-सूरतका अत्यन्त स्थूल रूपसे वर्णन कर सकें। एक व्यक्ति, जिसे चित्रकलाका अभ्यास नहीं, जब घोड़ा या गाय जैसी परिचित चीज़का चित्र खींचनेकी कोशिश करता है तो उसे जल्द पता चल जाता है कि उसे उसकी शक्लका सिर्फ उलझा हुआ शान है, जबकि एक कलाकारको उसके हर श्रवयवका सुलझा हुआ शान होता है। रसायन-शास्त्रवेत्ताको सोने चाँदीका सुलझा हुआ साफ शान होता है; क्योंकि वह दावेके साथ न सिर्फ यह बता सकता है कि अमुक धातु वास्तवमें सोना है या चाँदी बल्कि उन गुणोंका भी यथार्थ स्पष्ट वर्णन कर सकता है जिनके द्वारा वह उसे जानता है और यदि जरूरी हो तो, और भी बहुतसे अन्य गुणोंको बता सकता है। लेकिन जब