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________________ ४२६ अनेकान्त [वैशाख, वीर-निर्वाण सं० २४६५ उद्धार होता है। मैं तो यह कहता हूँ कि जैनी कम नहीं कर सकता। जालिम और अत्याचारीको सभी नहीं है मेरा तो यह हार्दिक ख्याल है कि जो भी बुरी निगाहसे देखते हैं । हिन्दू मुसलमानोंका पहिसा पर चलता है, वही जैनी है चाहे वह कोई लड़ना हमेशाके लिये खतम होगा और फिरसे मी क्यों न हो। • भाई भाईके नाते दोनोंका व्यवहार होगा । यदि अब तक लोग मांसाहार छोड़नेमें ही अहिंसा हम अपने दिलोंसे कशिश निकाल दें तो फिर समझते थे, परन्तु माज महात्मा गान्धीने वास्तविक सचा प्रेम अवश्य ही प्राप्त होगा। अहिंसावादको संसारके सामने रख कर बतला अहिंसाका विचार सर्वश्रेष्ठ वीरने ही दिया दिया है कि अहिंसाके सामने शस्त्री-करणको भी है। यहाँ एकसे एक विद्वान और महात्मा हुए लेकिन मुकना पड़ता है । हमने अभी तक अहिंसाके सबसे उत्कृष्ट भगवान् वीरकी ही अहिंसा थी । अहिअसली मतलबको नहीं समझा था। परन्तु माधु- साका जितना प्रचार वीरने किया उतना किसीने नहीं निक गान्धीय वातावरणने हमें उसका असली किया ।मांसाहारी कभीभी सुखी नहीं रहसकता,ऐसा मतलब बतला दिया है । आततायी बातोंको रोकने- एलोपैथिक डाक्टर भी मानते हैं । माँसाहारीको के लिये अहिंसाका अपनाना सबसे अच्छा है। रोग अवश्य पकड़े हुए होता है। आज वेदान्त पर जबतक संसारमें अहिंसा-धर्मका प्रचार नहीं होगा. जो अहिंसाकी छाप है, वह वीरप्रभुकी अहिंसा की तबतक शान्ति कायम नहीं हो सकती। हमें संसार- ही छाप है । यज्ञमें हिंसाको मिटा देना चीरका ही को शान्त करनेके लिये रक्तपात और शस्त्री-करण- काम था, मैं तो इसी कारण कहता हूँ कि हम को दूर करना होगा । वह भी एक समय था जब अजैन नहीं बल्कि जैन ही हैं । वीर प्रभुने संसारके कि मनुष्य मनुष्यको खा जाया करता था ! परन्तु प्राणियोंका कल्याण किया । हमें भी उनके विचारों भाज संसारमें इस बातका पता भी नहीं मिलता। पर चलना चाहिये । वे वाक़ई वीर थे। संसारका इससे आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि हमने सच्चा इतिहास वीरोंका ही इतिहास है। वीर-पूजाका वरकी की है और हम इससे भी अधिक तरकी यही महत्व है कि हम भी उन गुणोंको प्राप्त करें। रेंगे। जिनका हमें वीरने उपदेश दिया था। हमें श्राशाही भगवान् वीरने दुनियाको बतलाया था कि नहीं बल्कि विश्वास है कि हमारा भारत वीरके मनुष्यको अपने समान दूसरोंको भी मानना उपदेश पर चलनेसे ही सुखी होगा । इसलिये मैं चाहिये। भाज भारतवर्षका वातावरण, जिसने आप लोगोंको पुनः बता देना चाहता हूँ कि आप. कि तमाम योरुपको चकित कर दिया है, अवश्य अब यह अच्छी तरह समझलें कि जबतक अहिंसाही कलायेगा और फिर वह दिन भी होगा जब को नहीं अपनाएँगे, जिसका कि श्रेय भगवान् कि, प्रेम, अहिंसा और सचाईका जमाना और वीरको है, तबतक हम सुखी नहीं हो सकते । राज्य होगा। जुल्म करके मनुष्य कभी भी उन्नति (२-४-१९३९)
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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