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________________ गारवगाथा हमारे पराक्रमी पूर्वज (३) [ले. अयोध्याप्रसाद गोयलीय ] का सुना आपने ? यह जो हस्तिनागपुर तीर्थ- रथ यात्राओंके अधिकार प्राप्त हुए हैं। अतः तबकी , क्षेत्र पर खड़ा हुआ गगनचुम्बी विशाल जैन- तो बात ही निराली थी। सेठ साहबकी मनोभिमन्दिर स्वछ धवलपताका फहरा रहा है कब और लाषाको मीराँपुरके रांगड़ पूरी नहीं होने देते थे। कैसे बना १ देहलीके सेठ सुगनचन्दजीकी श्रान्ति- वे मरने मारने पर तुले हुएथे। उन दिनों हस्तिनागरिक अभिलाषा थी कि हस्तिनागपुर जैसे प्राचीन पुर और मीराँपुर साढौरा स्टेटमें सम्मिलित थे। जैन-तीर्थ-स्थानमें एक जिनमन्दिर बनवाकर भाग्यकी बात, दुष्काल पड़नेपर महाराज सादौतीर्थक्षेत्रका पुनरुद्धार किया जाय, किन्तु उन दिनों राको एक लाख रुपयेकी जरूरत पड़ी। सेठ सुगनजैनमन्दिर बनवाना मानों लन्दनमें काँग्रेस-भवन चन्दजी साहूकारीके लिये काफी विख्यात थे। अतः निर्माण करना था। एक ओर मुसलमानी बादशाहत सब ओरसे निराश होकर महाराज साढौराने अपना मन्दिरोंके निर्माणकी आज्ञा नहीं देती थी, दूसरी दीवान सेठ साहबके पास भेजा और बगैर कोई “ओर हिन्दु भी जैनोंका विरोध करते थे। वे विरोधी लिखा पढ़ी कराये ही सेठ साहबके संकेत पर मुनीभावनाएँ आज इस संगठन और स्वतन्त्रताके युग- . मने एक लाख रुपया गिन दिया। में भी बहुत कुछ अपशिष्ट बनी हुई हैं, कितने ही एक वर्षके बाद दीवान साहब जब एक लाख स्थानोंपर अब भी जैनमन्दिर बनवाने और रथ- रुपया व्याज समेत वापिस देने आए तो सेठ साहबयात्राएँ निकालनेमें रुकावटें आती हैं और सैंकड़ों के मुनीमने रुपया लेनेसे इनकार करदिया और स्थानों में लाखों रुपया व्यय करके अदालतों द्वारा कहा कि “हमारे यहाँसे महाराज सादौराको कभी
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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