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________________ वर्ष २, किरण १] गोत्रकाश्रित ऊँच-नीचता में नौकर, चाकर, हाथी घोड़ा आदि सवारी बनाने वाले, मनुष्य उच्चगोत्री हैं, ऐसा गोमटसार में लिखा है, यह चण्डालका काम करने वाले अछूत, भूत-प्रेत-राक्षस बात सुनकर हमारे बहुत से भाई चौंकेंगे ! 'सभी देव और व्यंतर जैसे नीच काम करनेवाले पापी देव सबही उच्चगोत्री हैं, इसका तो शायद उन्हें कुछ फिकर न उच्चगोत्री हैं, उसही प्रकार मनुष्य भी घटिया मे घटिया होगा; परन्तु ‘सभी मनुष्य उच्चगोत्री हैं', यह बात एक और बढ़िया से बढ़िया सब ही उच्चगोत्री हैं। गोमटसार दम माननी उनके लिये मुश्किल जरूर होगी, इस कर्मकाण्ड गाथा नं०१८ में यह बात साफ़ तौर से बताई कारण इसके लिये कुछ और भी प्रबल प्रमागा देनेकी गई है कि नीच-उधगोत्र भावों के अर्थात् गतियांक श्राश्रित ज़रूरत है । श्रीतत्त्वार्थमूत्र में आर्य और म्लेच्छ ये दो हैं । जिममे यह स्पष्टतया ध्वनित है कि नरक-भव और भेद मनुष्य जाति के बताये गये हैं, अगर प्रबल शास्त्रीय तिर्यन-भव केमर जीव जिम प्रकार नीचगोत्री हैं उसी प्रमाणों में यह बात सिद्ध हो जाये कि म्लेच्छ खएडांक प्रकार देव और मनुष्य-भव वाले सब जीत्र भी उच्चगोत्री म्लेच्छ भी सब उच्चगोत्री है तो आशा हैं कि उनका हैं। यथा यह भम दूर हो जायगा । अस्तु । गोम्मटसार-कर्मकाण्ड गाथा २६७ और ३०० के "भवमरिसय चिननं इदि गोदं।" कथनानुमार नीचगोत्रका उदय पांचवं गुणस्थान तक तत्यार्थसूत्र अध्याय ८ मृत्र २५ को प्रसिद्ध टीकारा ही रहता है, इसके ऊपर नहीं* अर्थात् छट गुणस्थान मं......भवार्थसिद्धि. राजवानिक और श्लोकवाति कम--- और उसके ऊपर के गणम्थानाम नीचगोत्रका उदय नहीं देव और मनुष्य ये दो गतियां शुभ वा श्रेष्ठ और उच्च है अथवा यों कहिये कि नाचगोत्री पांचवें गुणस्थानमे बताई हैं और नरक तथा निर्यच ये दो गतियां अशुभ ऊपर नहीं चढ़ सकता, छठा गुणस्थानी नहीं हो सकता रतनपर माता या नीच, इसी कारण गोम्मटमार कर्मकाण्ड गाथा और न मकन संयम ही धारणा कर सकता है। बहुधा २८५ में मनुष्यगति और देवनि में उच्च गोत्रका उदय हमार जैनी भाई श्रीधवन और जयधवन आदि सिद्धान्त बताया है । यथा-- ग्रन्यांको नमसार करने वाले जनविद्री-महविद्रीकी गदिश्राणुाउ उदओ सपद भूपुराणबादरे ताा। यात्रा करत है । उनमें से श्रीजयधवल ग्रन्थमं स्पष्ट तौर उच्चदओ हरदेव थीणतिगदी गरं निारय । पर मिद्ध किय है कि म्लेच्छग्वण्डों के म्लेच्छ भी मकन्न संयम धारण कर सकते हैं...-छठे गुणस्थानी मुनि माधु इसी प्रकार गाथा २९० और २९४ के द्वारा नार- हो सकते हैं। दिगम्बर अाम्नाय में यह शान बहुत ही कीयों तथा तिर्यचों में नीचगोत्रका उदय बताया हे, ज्यादा माननीय है । इसके भिवाय, श्रीनम्धिसारकी जिससे चारों ही गतियोंका बटवाग ऊंच और नीच दो गोत्रों में इस प्रकार हो गया है कि नरक और नियंच दम दियकमाया तिरिया उजोव गीचतिये दो भव तो नीचगोत्री और देव तथा मनुष्य ये दो रियगदी। छ8 आहाग्दुगंधागातियं उदयबाच्छिराणा ॥२६॥ भव उच्चगोत्री हैं। जिस प्रकार सभी नारकी और मभी से तदियकसाया णाचं गमन भणुससामगण। तिर्यंच नीचगोत्री हैं उसी प्रकार मभी देव और मभी पजत्तेविय इत्थी वंदा उपजत्तिपरिहीणा ॥ ३०० ।।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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