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अनुसन्धान
श्रीपूज्यपाद और उनकी रचनाएँ
[ सम्पादकीय ]
नसमाज मे 'पूज्यपाद' नामके एक सुप्रसिद्ध प्राचार्य विक्रमकी छटी ( ईसाकी पाँचवीं शताब्दी में हो गये हैं, जिनका पहला अथवा दीक्षानाम 'देवनन्दी' था और जो बादको 'जिनेन्द्रबुद्धि' नामसे भी लोक में प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हैं। आपके इन नामोंका परिचय अनेक शिलालेखों तथा ग्रन्थों आदि परसे भले प्रकार उपलब्ध होता है। नीचे के कुछ अवतरगा इसके लिये पर्याप्त है यो देवनन्दिप्रथमाभिधानो
:
बुद्ध्या महत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः ! श्रीपूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयम् ||३||
- श्रीवणबेलगोल शि० नं० ४० (६४) प्रागभ्यधायि गुरुणा किल देवनन्दी, बुद्ध्या पुनर्विपुलया स जिनेन्द्रबुद्धिः । श्रीपूज्यपाद इति चैष बुधैः प्रचये, यत्पूजितः पदयुगे वनदेवताभिः ॥२०॥
- भ० शि० नं० १०५ (२५४)
श्रवणबेलगोलके इन दोनों शिला वाक्यों परले, जिसका लेखनकाल क्रमशः शक सं० २०३७५ १३२० है, यह साफ जाना जाता है कि आचार्य महोदयका प्राथमिक नाम 'देवनन्दी' था, जिसे उनके गुरुने रक्खा था और इसलिये वह उनका दीचानाम है, 'जिनेन्द्रबुद्धि' नाम बुद्धि की प्रकर्षता एवं विपुलवाके कारण उन्हें बादको प्राप्त हुआ था और जबसे उनके चरणयुगल देवताओंसे पूजे गये थे तबसे वे बुधजनों द्वारा 'पूज्यपाद' नामसे विभूषित हुए है। श्रीपूज्यपादोद्धृतधर्मराज्यस्ततः सुराधीश्वरपूज्यपादः । यदी दुष्पगुणानिदानी वदन्ति
शाखाणि तदुद्धृतानि ॥१५॥ धृतविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः
कृतकृत्यभावमनुषिअद्दुच्चकैः । जिनबद्धभूव यदनङ्गचापहृत्स
जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवर्णितः ॥१६॥
- १० शि० ० १०८ (२५८)