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________________ श्रुतज्ञानका प्राधार [ लेखक-५० इन्द्रचन्द्र जैन यानी ] नाचार्योने मतिशन और भुतशानको सभी भावमनके दो भेद किये जाते हैं-लब्धिप और " संसारी प्राणियोंके स्वीकार किया है। मति- उपयोगरूप । लन्धि "अर्थ-ग्रहण-शक्ति" और उपयोग मान सब प्राणियोंके होता है, इस विषयमें विवादके "अर्थ-ग्रहण व्यापार" को कहते है। इन दोनों प्रकार लिये स्थान नहीं है। परंतु श्रुतशनके विषयमें नाना के परिणामोंको भावमन कहते है। प्रकारकी शंकायें उठा करती है। प्राचार्योंने श्रुतज्ञानको “समनस्कामनस्काः" इस सूत्रकी म्याख्यामें मनका विषय माना है. तथा श्रुतशान सभी प्राणियोंके "वीर्यान्तराय-नोइन्द्रियावरणक्षयोपरामापेक्षयामात्महोता है, ऐसी अवस्थामें सभी प्राणी मन वाले हो नो विशुद्धिर्भावमनः" इस वाक्यके द्वारा यह जावेंगे । जितने भी मन-सहित होते हैं वे सभी संशी प्रतिपादन किया है कि बीर्यान्तराय और नोइन्द्रियाकहलाते हैं । इस प्रकार सभी संसारी प्राणी संशी कह- वरण कर्मके क्षयोपशमसे श्रात्माकी विशुद्धिको भावमन' लाने लगेंगे, तब संज्ञी और असंज्ञी की भेदकल्पना हीन कहते हैं। रहेगी । यदि इन दोनों भेदोंको माना जाय तो श्रुतज्ञान यह भावमन केवल प्रात्मपरिणामों पर ही निर्भर की संभावना सभी संसारी प्राणियोंके न रहेगी, क्योंकि है। लन्धि और उपयोग इन दोनों प्रात्मपरिणामोंमेंसे असंशीके मन कैसे संभव हो सकता है ? मन तो न हो किसी एक परिणामके होने पर भी भावमनकी संभावना और मनका विषय हो यह कैसे हो सकता है? हो सकती है। इस प्रकार लन्धिरूप भावमन सभी __ इसका समाधान इस प्रकार किया जाता है कि, प्राणियोंके संभव हो सकता है । इसलिये 'भुतशन सभी असंज्ञीके द्रव्यमन तथा उपयोगरूप भावमन नहीं होता प्राणियोंके होता है इसमें कोई बाधा नहीं पाती। किन्तु लधिरूप भावमन सभी प्राणियोंके होता है। इस शंका-क्या द्रव्यमनके बिना भावमन हो सकता लिये श्रुतशान सभी प्राणियोंके हो सकता है । यह सम- है ? यदि एकेंद्रिय जीवमें द्रव्यमनके बिना भावमन हो न्वय कहाँ तक उचित है, इसी पर विचार करना है। सकता है, तो द्रव्यरसनाके बिना भावरसना, द्रव्यप्राणके . जैनाचार्योंने मनके दो भेद किये है-पहिला भाव बिमा भावनागा आदि पांचों भावेन्द्रियोंका सत्व होना मन दूसरा द्रव्यमन -। द्रव्यमनके विषयमें विचार नहीं चाहिये । अन्यथा, एकेंद्रिय जीवमें द्रव्यमनके बिना करना है । यहां विवाद केवल भावमनके विषयमें है। भावमन तो होजाय,किन्तु द्रव्यरसना प्रादिके बिना भावइसलिये उसी पर विचार किया जाता है। रसना आदि न हो इसमें क्या नियामक है। भावमन * श्रुतमनिन्द्रियस्य । - तत्वार्थस्त्र-श्र० २ सूत्र २१ जैसे द्रव्यमनके बिना उपयोगरूपमें नहीं मा xमनो द्विविध द्रव्यमनो भावनति । तत्वार्थग्रहणशक्तिलंब्धिः, अर्थग्रहणध्यापारउपयोगः । -सर्वार्थसि०अ०२ सू०.११ -सपीयकाय, पे०१५
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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