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________________ ३६ अनेकान्त [कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ इत्यादिक अनेक प्रकार की वेदनाएँ नारकियोंको दिल- तीर्थकरों के अंगों तक को दी गई है, चम्पा, चमेली, वाकर ये असुरकुमार अपना खेल किया करते हैं। गुलाब भी कुछ कम प्रतिष्ठा नहीं पा रहे हैं: फलों में परन्तु ऐसा नीचकृत्य करते रहने पर भी ये उच्चगोत्री भी अनार, संतरा, अंगूर, सेव और आम बहुत क़दर ही बने रहते हैं। पाए हुए हैं। व्यंतरदेवोंकी भी यक्ष, राक्षस, भत, पिशाच आदि पशुओंमें भी सफेद हाथीकी बड़ी भारी प्रतिष्ठा है; अनेक जातियां है । इनमेंसे भत, पिशाच और राक्षसों सिंह तो मृगराज व वनका राजा माना ही जाता है, जिस के कृत्यों को वर्णन करनेकी कोई ज़रूरत मालम नहीं के बल-पाराक्रम-साहस-दृढ़ता और निर्भीकतादिकी उपमा होती । इनकी हृदय-विदारक कहानियां तो कथा-शास्त्रों बड़े बड़े राजा महाराजाओं तथा महान् तपस्वियों तक में अक्सर सुननेमें आती रहती हैं, भूत-पिशाचोंके को दी जाती है और जिसके दहाड़ने की आवाज़ से कृत्यों को भी प्रायः सभी जानते हैं और यह भी मानते अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते हैं. गौ माता २० करोड़ है कि इनकी अत्यन्त ही नीच पर्याय है, जो इनको हिंदुओं की तो पूज्य देवता है ही, किन्तु संसार के अन्य इनके पाप कर्मों के कारण ही मिलती है। परन्तु ये सब भी सब ही मनुष्य उसके अमृतोपम दूध के कारण उसको देव भी उच्चगोत्री ही है। बहुत उत्कृष्ट मानते हैं । अमरीका, आष्टं लिया आदि हरिवंशपुराण का कथन है कि कंस को जब यह देशोंमें तो, जहां गायके सिवाय भैंस-बकरीका दूध मालूम हुआ कि उसका मारनेवाला पैदा हो गया है पीना पसन्द नहीं किया जाता है, गायों की बड़ी भारी तो उसने अपने पहले जन्म की सिद्ध की हुई देवियों को टहल की जाती है, अपनेसे भी ज्यादा उनको इतना याद किया, याद करते ही वे तुरन्त हाजिर हुई और खिलाया-पिलाया जाता है कि वहां की गायें एक बार बोली कि हम तुम्हारे वैरी को एक क्षण में मार डाल दुहनेमें एक मन भर तक दूध देने लग गई हैं और सकती हैं । कंसने उनको ऐसा ही करनेका हुक्म पांच हजारसे भी अधिक मूल्यको मिलती हैं। इतना दिया, जिस पर उन्होंने कृष्णके मारनेकी बहुत ही सब कुछ होने पर भी ये सब तिर्यंच नीचगोत्री हैं । तदबीरें की। सिद्ध की हुई ऐसी देवियोंक ऐसे ऐसे तिर्यंचों की हज़ारों-लाखों जातियों में आकाश-पाताल अनेक दुष्कृत्योंकी कथाएँ जैन ग्रन्थों में भरी पड़ी है। का अन्तर होने और उनमें बहुत कुछ ऊंच-नीचपना फिर भी ये सब देवियां उच्च गोत्री ही हैं। माना जाने पर भी गोत्र कर्म के बटवारे के अनसार सब ही तिथंच नीच गोत्र की पंक्ति में बिठाये गये हैं। अब जरा तियचौकी भी जांच कर लीजिए और सबसे पहले बनस्पति को ही लीजिए, जिसमें चन्दन, जिस प्रकार देवों की अनेक जातियों में ऊँच-नीचकेसर और अगर आदि बनस्पतियां बहुत ही उच्च का साक्षात् भेद होने पर भी सब देव उच्चगात्री और जातिकी है, बड़-पीपल भी बहुत प्रतिष्ठा पातं तियचों में अनेक प्रतिष्ठित तथा पूज्य जातियां होने पर है और २० करोड़ हिंदुओंके द्वारा पूजे जाते हैं; फलों भी सब तिर्यंच नीच गोत्री हैं उसी प्रकार नरकोंमें भी में कमल तो सब से श्रेष्ठ है ही- उसकी उपमा तो यद्यपि प्रथम नरकसे दूसरे नरकके नारकी नीच हैं,
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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