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अनेकान्त
[ चैत्र, बीरनिर्वाण सं० २४६५
वह देशका भूषण है। प्रत्येक देशवासीके हृदयमें उसकी मंजुलमयी प्रतिमा विराजती हैं। वह अनाथोंका पिता है, विधवाओंका भ्राता है, युवकोंका सखा है, और वृद्धोंका सहारा है । दुखीकी एक भी करुण पुकार उसके अन्तस्तलमें उथल-पुथल मचा देती है, वह अधीर हो उठता है ! अब भी प्रकृति उसकी सहचरी है, परन्तु 'सेवा' अब उसके हृदयकी रानी है ! न उसे किसीसे घृणा है, न उसे किसीसे द्वेष है । उसके हृदयमें प्रेमकी एक सरिता बहती है, जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसका कोई अन्त नहीं ! ग्राम-ग्राम घर-घर वह जाता है। छोटे-छोटे बच्चोंको अपने पास बिठा कर बड़े प्रेमसे शिक्षा देता है। युवकोंको वह बातें समझाता है और उनके काम में सहायता देता है। उसने प्रत्येक व्यक्तिके हृदयमें यही भावना भर दी है कि भगवान् तुम्हारे अन्दर हैं, उनको देखो, उनको पहिचानो, मनुष्य मात्रसे प्रेम करो, तभी उनको पहिचान सकोगे । उसने ही जनतामें साहस, सज्जनता, उदारता और क्षमा आदि गुणोंका फिरसे संचार कर दिया है ! उसके ही त्यागसे सारे देशमें शांति तथा सुखका साम्राज्य फैला हुआ है और इसीमें उसका सच्चा संतोष है।
प्रत्येक देशवासीने उसे अपना सम्पूर्ण हृदय अर्पित कर दिया है, वह उसकी पूजा करता है, भक्ति करता है और उसे अपना देवता समझता है।
और सब उसे 'पथिक' कहते हैं ।
रात्रिका पिछला प्रहर, पृथ्वी पर अलसाई -सी चाँदनी फैली हुई थी, श्राकाशमें चन्द्रदेव हँस रहे थे और वह 'चला जा रहा था न मालूम किस श्रोर १ पक्षी बोला'कहाँ चले' | फूलने कहा- 'उस पार'। उसके पास इतना समय न था कि इसका उत्तर देता ! श्राज या तो उसके जीवनका अवसान था और या मंगल प्रभात । वह अपने प्रश्नका उत्तर पूछने जा रहा था । उसके हृदयमें आशा की ज्योति जग रही थी, कभी निराशा आकर उसको बुझा देती और कभी फिर श्राशा श्राकर उसको सँवार लेती। उसने देखा कुछ दूरपर कदम्बके नीचे दीपक जल रहा है। उसकी श्रात्माने कहा - 'बढ़े चलो, उसकी गति तेज़ हो गई ! उसने देखा एक योगी ध्यानमग्न बैठे हैं, वह बैठ गया ! उनकी शान्त मुद्रासे एक ज्योति-सी निकल रही थी। समाधि टूटी, योगीश्वर बोले - "क्या पूछते हो ।” उसने कहा" जीवन का उद्देश्य ।" एक कोमल वाणी हुई, उसने सुना, योगीश्वर ने कहा- "मनुष्य मात्रकी सेवा ।" वह खड़ा हो गया, उसके हृदयने कहा - "परोपकार" । दूरसे ध्वनि श्रई "मनुष्यकी सेवा" ! सहसा अशानका पर्दा फट गया ! इष्टि निर्मल हो गई। उसकी श्रात्माने संतोषकी साँस ली। उसके मनमें तब शांति विराजमान थी । वह एक ओर चला और बिलीन हो गया !