SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोत्र कर्माश्रित ऊंच-नीचता - (ले. श्री० बा० सूरजभानुजी, वकील ) कर्मकी आठ मूल gemsoodccordPRAD00000000000OSCORang कर्मसे जीवोंके भावोंका नियों द्वारा इस लखक लखक श्रद्धय बाबू सूरजभानजा सकती 8 वकील समाजके उन पुराने प्रमुख सेवकों एवं लेखकों का भी एक कम है, जो है । जैन शास्त्रों में इस में से हैं जिन्होंने शुरू शुरूमें समाज को ऊंचा उठाने, जीवके असली स्वभाव उसमें जीवन फकने और जागति उत्पन्न करनेका भारी कमके ऊँच और नीच को घात नहीं करता काम किया था। आज जैन समाजमें सभा-सोसाइटियों 8 ऐसे दो भेद बता कर इसी कारण अघातिया की स्थापना, आश्रमों-विद्यालयोंकी योजना, वेश्या- यह भी बता दिया है कहलाता है । केवलनृत्यादि जैसी कुरीतियोंका निवारण, ग्रन्थों तथा पत्रों अस्तित्व तो नीचगोत्रका का प्रकाशनादिरूपसे जो भी जागतिका कार्य देखने ज्ञान प्राप्त कर लेने के 9 भी केवल-ज्ञान प्राप्त 8 में आता है वह सब प्रायः श्रापकी ही बीजरूप सेवाओं बाद अर्थात् तेरहवें गुण- का प्रतिफल है । असें से वृद्धावस्था आदि के कारण 6 करनेके बाद तेरहवें गुणस्थानमं भी इसका उदय आप कुछ विरक्त से हो गये थे और आपने लिखना- स्थानमें बना रहता है बना रहता है, इतना ही पढ़ना सब छोड़ दिया था, लेकिन बहुत दिनांस मेरा तथा १४वें गुणस्थानमें आप से यह बराबर प्रेरणा और प्रार्थना रही है कि नहीं किन्तु चौदहवं भी अन्तसमयके पूर्व तक श्राप बीर-सेवा-मन्दिरमें श्राकर सेवा कार्य में मेरा गुणस्थानमें भी अन्त पाया जाता है। यथाहाथ बटाएँ और अपना शेष जीवन मेवामय होकरही समय के पूर्व तक इसका व्यतीत करें । बहत कुछ आशा-निराशाके बाद अन्तg णीचुच्चाणेकदरं, बंधुदया उदय बराबर चला जाता को मेरी भावना सफल हुई और अब बाबू साहब कई है। चौदहवेंके अन्त 8 महीनेसे वीर-सेवा-मन्दिरमें विराज रहे हैं । इस हाति संभवट्ठाणे । समय में इसकी व्यमिति आश्रममें आते ही आपने अपनी निःस्वार्थ सेवाओ दो सत्ता जोगित्ति य, से आश्रम-वासियांको चकित कर दिया ! श्राप दिनहोती है; जैसा कि श्री 8 चरिमे उच्चं हवे सत्तं ॥ रात सेवा-कार्य में लगे रहते हैं, चर्चा-वार्ता करते हुए -गो० कर्म० ६३६ गोम्मटसार- कर्मकाण्ड नहीं थकते. प्रति दिन दो घंटे कन्या-विद्यालयम के निम्न वाक्यसे प्रय कन्याओंको शिक्षा देते हैं, दो घंटे शास्त्र-सभामं जब नीच गोत्रका 8 व्याख्यान करते हैं और शेष सारा समय आपका ग्रन्थों 8 अस्तित्व केवल-शान पर से खोज करने तथा लेख लिखने-जैसे गम्भीर कार्य प्राप्त होने के बाद सयोगतदियेवक मणुवगदी,पंचि में ही व्यतीत होता है । यह लेख आपके उसी परिश्रम दियसुभगतसतिगादज का पहला फल है, जिसे प्रकाशित करनेमें 'अनेकान्त केवली और अयोगकेवली जसतित्थं मणुवाऊ, उच्च 8 अपना गौरव समझता है । आशा है अब आपके लेख के भी बना रहता है Ho बराबर 'अनेकान्त' के पाठकों की सेवा करते रहेंगे। कू और उसमे उन आप्तच अजोगिचरिमम्हि । इस लेखमें विद्वानोंके लिये विचारकी पर्याप्त सामग्री 8 पुरुपोंके सच्चिदानन्द गाथा २७३ % है । विद्वानों को उस पर विचार कर अपना अभिमत स्वरूपमें कुछ भी बाधा प्रकट करना चाहिये, जिससे यह विषय भले प्रकार स्पष्ट इससे यह बात भी नहीं आती तब इस बात होकर खूब रोशनी में श्रा जाय। -सम्पादक स्पष्ट होजाती है कि गोत्र- SADDEDVDB000000000000000000000000000 में कोई सन्देह नहीं रहता 9000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy