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________________ वर्ष २, किरण ६] नारीत्व an समयमें जिस धीरतासे तुमने काम लिया-उसके तो होती है ! मैं नहीं जानता था-महारानी इतनी लिए मैं तुम लोगों से बहुत प्रसन्न हूँ ! तुम्हें इसी वफा- उहण्ड है ! यह उनकी गहरी पुस्ताका परिचय है। दारीके साथ-!' पौरुष, पुरुषों के बाँटकी चीज़ है। उसे अपनाकर उनोने 'लेकिन महाराज...! अनधिकार चेष्टा की है!--बज़नदार अपराध किया है! 'क्या...' स्त्रीत्वकी अवहेलना ही उसका अन्त है। "त्रियोंको .."विजय प्राप्तिमें हम लोग तो नाम मात्रके लिए होना चाहिए कोमल! वीरत्व उन्हें शोभा नहीं देता! हैं। असल में इस बातका सारा श्रेय महारानी सिंहिका- वह उनकी चीज़ ही नहीं!'-एक गहरी साँस लेते हुए को ही दिया जा सकता है । उन्हींके बल, उन्हींके महाराजने प्रगट किया ! साहस और उन्हींके अदम्य उत्साहके कारण हमारी 'महाराजका कहना अनुचित नहीं ! लेकिन इतना विजय हो सकी है । नहीं तो देशकी रक्षा नितान्त कठिन विचारणीय अवश्य है कि उस परिस्थितिमें जिसमें यी ! 'साथ ही, उन्होंने एक और शुभ-संवाद अापके कि महारानीजीने स्वदेश प्रेमसे प्रेरित होकर अपनी सुनानेके लिये प्रेषित किया है ! वह यह कि लगे हाथों बीरताका सफल-प्रदर्शन किया है कदापि दूषित नहीं ! उन्होंने दक्षिण-दिग्विजय भी कर डाली । सभी उद्दण्ड उसे धृष्टता न कहकर कर्तव्य-निष्ठा कहना अधिक उपदुश्मन श्राज नत-मस्तक हैं। महारानीकी शत्रुघाती युक्त प्रतीत होता है !'-प्रधान-सचिवने दलील पेश तलवारने वह करिश्मा दिखाया कि आज आपकी कीर्ति की! शतोमुखी हो रही है !...' __'ऊँह ! कोरी विडम्बना ! अगणित-पर-पुरुषों के 'महारानी स्वयं रणांगण में लड़ी ?' बीचमें एक स्त्रीका जाना, चारित्रिक-रबिसे क्षम्य 'हाँ, महाराज! उन्हींके शौर्यने विजयी बनाया, नहीं ! स्त्रीकी निचय ही- -जघन्य-प्रवृत्तिका योतक नहीं--देश बर्बाद हो हीचुका था। उन्होंने इस दिलेरीके है!...'-महाराजने अपनी उपेक्षाको आगे बढ़ाया। साथ शत्रु-सेनाका क्षय किया कि बड़े-बड़े योद्धा दाँतों-तले साधारण तरीके पर यह भी माननीय हो सकती है। उंगली दाब गये । शत्रु-पक्ष तितर-बितर हो गया। वह परन्तु यह बात सिद्धान्त नहीं बन सकती ! स-तेज शस्त्र-शास्त्रकी पूर्ण ज्ञाता है।.." स्त्रीत्वके सन्मुख विकारोंको नष्ट होजाना पड़ता है! फिर ___ महाराजने स्या सुना, क्या नहीं; कौन कहे? महारानी जैसी पतिवृत-धर्म-परायणा स्त्री पर भारोप उनका मुख-कमल मलिन हो गया उदासीकी लकीरें लगाना, उनके साथ अन्याय है ! उनके उपकारपर्ण कपोलों पर मलक उठी। जैसे मनोवेदना स-जग हो कार्यके प्रति कृतघ्नता है! और एक महान् श्रादर्शउठी हो। का विरोध !!'-प्रधान-सचिवने समझाया ! वह कुछ देर चुप, सोचते रहे ! पोलिटिक्स-विचारोंने महाराजके दाम्पत्तिक-जीवन में गहरी निस्तब्धता! विरक्तताका सूत्रपात किया ! वह राष्ट्रीय हानि लाभके फिर बोले-'प्रोफ़ ! कितनी विचारणीय बात है ! मावोंसे दूर हटकर, नारीवके अन्वेषणमें घुस लम्जाका इतना परित्याग ?"नीकी शोभा लज्जासे ही पड़े! बोले-'हो सकता है महारानीके सतीत्व पर शंका
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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