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________________ INनारासमत्थानक M [लेखक-श्री. भगवतस्वरूप जैन 'भगवत्'] नोनों इतिहाससे पहलेकी चीजें है—पाप और खाली न था ! अयोध्याके इर्द-गिर्द चारों तरफ बड़ी पड़ी 'पुण्य ! .."नीची-मनोवृत्तिका नाम पाप और फौजें उसे घेरे हुए पड़ी थीं ! नगरमें आतंक छाया हुवा ऊँचीका नाम पुण्य ! चाहे एकका नाम दुर्जनता, था! प्रत्येक स्वदेश प्रेमीका हृदय-इस सहसा श्रानेवाले दसरीका सज्जनता रख लीजिए !प्रकारान्तरसे बात एक संकटके कारण-क्षब्ध हो रहा था! दुखद-भविष्यकी ही श्राकर पड़ती है। कठोर-कल्पना उसे उत्पीडन दे रही थी ! महाराजकी __छिद्रान्वेषण अधम-मनोवृत्तिका ही एक प्रकार है । अनुपस्थितिमें, इन उद्दण्ड, दुष्ट-प्रकृति, राज्य लोलुपोंके और वह प्रत्येक न्याय-हीन हृदयमें स्थान पानेके लिए अनाचार-पूर्ण कृत्योंके प्रति जनता अत्यन्त उम्र थी कटिबद्ध रहा करता है !...अयोध्या नरेश महाराज मधुकको अवश्य ! लेकिन विवश थी, मजबूर थी ! उसका प्यारा उत्तर-दिशाकी अोर दिग्विजयके लिए गया हुआ जान, शासक उससे दूर था ! उसके दुख दर्द, उसकी अन्तरदुर्जन-नरेशीको अयोध्याका राजमुकुट लेनेकी सूझी ! वेदनाका पछने-सुनने वाला कोई न था ! नगरमें नीरवता उन्होंने सोचा-'अयसर अनुकूल है ! अवसरसे लाभ विराज रही थी! ठीक वैसी, जैसी मध्य रात्रिमें श्मशान लेना है विद्वत्ताका काम ! सिंहासन सूना है! नाम मात्र की! न कहीं उमंग न उल्लास ! के लिए-महारानी सिंहिका स्थानापन्न है ! लेकिन उससे स्या ... ? ... रणांगण, कठोरताका उपनाम है ! वनहृदयकी आवश्यकता है उसके लिए ! नारी...!-कोमलांगी-नारी, नाम सुनकर ही भयाकुल हो उठेगी! धैर्य ...मैं मानती हूँ नारी कोमल होती है ! लेकिन खो बैठेगी ! उसके किए. कुछ न होगा ! और राज्य स्मरण रखिए, मान-मर्यादाका ध्यान उसे भी रहता है ! हमारा, और फिर हमारा ! इसमें कोई सन्देह नहीं !...' महाराजकी अनुपस्थिति में राज्यकी जिम्मेदारी, उतका और दूसरे ही प्रभात-अयोध्याका सिंहासन खतरेसे उत्तरदायित्व मेरे सिर है ! प्रणाका सुख-दुख मेरे अधीन
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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