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________________ वर्ष २, किरण ६] प्राचार्य हेमचन्द्र २५६ विद्या, मन्त्र, तन्त्र, यंत्र, वादविद्या, न्यायशाख, लिखा हुमा रहेगा। कहा जाता है कि प्राचार्य हेम आदि अनेक विधाओंके महासागर थे । इस प्रकार चन्द्रने एक सर्वथा नग्न पचिनी खीके सामने अपनी इनकी प्रत्येक शास्त्र में अव्याहतगति, दूरदर्शिता और विद्याकी सिझी की थी। उस समय भी इनके शरीरमें व्यवहारशता देखकर यदि "कलिकाल सर्वश" अथवा बाल बराबर भी विकृति नहीं आई थी। इससे अनुमान वर्तमान भाषामें कहा जाय तो "जीवितविश्वकोष" किया जा सकता है कि ये ब्रह्मचर्वके कितने बड़े जैसी भावपूर्ण उपाधिसे हमारे चरित्र नायक विभूषित हिमायती और पूर्ण पालक थे । यों तो ये बाल-बमचारी किये गये हैं तो यह जरा भी अत्तुक्ति पूर्ण नहीं समझा ये ही और पाजीवन एक निष्ठासे विशुद्धरूपेण ब्रह्मजाना चाहिये । यही कारण है कि इनके नामके साथ चर्य व्रतका इन्होंने पालन किया था । दीर्घ कालसे “कलिकालसर्वश” उपाधि जुड़ी हुई देखी ।इस प्रकार प्राचार्य हेमचन्द्र साधुनोंमें चक्रवती जाती है। पीटर्सन आदि पाश्चिमात्य विद्वानोंने तो कामदेव जीतनेमें महादेव, शानलक्ष्मीमें कुबेर, ज्याश्राचार्य श्री को Ceeon of knowledge अर्थात् ख्यान समयमें बृहस्पति, प्रयत्नमें भागीरथ, तेजमें "जानके महासागर" नामक जो अनुरूप उपाधि दी सर्य, शान्तिमें चन्द्र, स्थिरतामें मेरू, इन्द्रिय दमनमें है । वह पूर्णरूपेण सत्य है ।। यमराज, और सत्यमें युधिष्ठिरके समान थे। हमारे चरित्र-नायक तपस्याके जलते हुए अंगारे, शानक प्राचार्यश्रीके अन्य संस्मरण समुद्र, चारित्रमें स्फटिक, संयमकी साकार प्रतिमा, कहा जाता है कि प्राचार्य हेमचन्द्रने अपने प्रशंस- गुणोंके आगार, शक्तिके भण्डार, और सेवामेंनीय जीवन कालमें ३३ हजार घरोको अर्थात् लगभग परोपकारमें दधीचिके समान थे। डेढ़ लाख मनुष्योंको जैनधर्मावलम्बी बनाया था । अन्तमें ८४ वर्षकी आयुमें संवत् १२२६ में श्राचार्य श्री चाहते तो अपने नामसे एक अलग संप्र- गुजरातके ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण भारतके असाधारण दाय अथवा नया धर्म स्थापित कर सकते थे। किन्तु तपोधन रूप इन महापुरुषका स्वर्गवास हुना। यह उनकी महान् उदारता और अलौकिक निस्पृहता .आपके अनेक शिष्य थे । उनमेंसे रामचन्द्र, ही थी, कि उन्होंने ऐसा नहीं करके जैनधर्मको ही दृढ़, गुणचन्द्र, यशचन्द्र, उदयचन्द्र, वर्धमानगणि, महेन्द्रस्थायी, एवं प्रभावशाली बनानेमें ही अपना सर्वस्व मुनि, और बालचन्द्र ये सात मुख्य कहे जाते हैं। होम दिया। __ अन्त में इन शन्दोंके साथ यह निबन्ध समास ___ यह जैन-समाज इस प्रकार अनेक दृष्टियोंसे किया जाता है कि प्राचार्य हेमचन्द्रकी कृतियाँ, चरित्र प्राचार्य हेमचन्द्रको सदैव कृतज्ञता पूर्वक स्मरण करता और परोपकारमय जीवन बतलाता है कि ये कलिकाल रहेगा और प्राचार्य हेमचन्द्रका नाम जैनधर्मके उस सर्वश, जिन-शासनप्रणेता और भारतकी दिव्य विभूति कोटिके ज्योतिर्धरोंकी श्रेणीमें सदैवके लिये स्वर्णाक्षरों में थे।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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