SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [पाल्गुन, बीर-निर्वाण सं०२४६५ दीहकालमयं जंतू उसदो अट्टकम्महि । उत्तरार्धसे नहीं मिलता; स्योंकि वह श्रीकुन्दकुन्दके सिदे धचे विधत्ते य सिद्धत्तमुवगच्छइ । नियमसारकी १२८ नंबरकी गाथाका पूर्वार्ध है और वहीं -मूला०, ५०७ से उठाकर रक्खा गया जान पड़ता है। मूलाचारकी दीहकालरयं जंतू कम्मंसेसियमट्टहा। ५२५, ५२६ नं वाली दोनों गाथाएँ नियमसारमें क्रमशः सिंप्रचंतंति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजायइ । नं. १२७ व १२६ पर पाई जाती है; परन्तु ५२६वीं -श्राव०नि०,६५३ गाथाका उत्तरार्ध नहीं मिलता, वह नियमसारकी १२८वीं बारसंगं जिणक्खादं सज्झायं कथितं बुधैं । गाथाका पूर्वार्ध है और वहीं से उठाकर रखा गया उवदेसइ सम्झायं तेणुवझाओ उच्चदि ॥ जान पड़ता है। मूला०,५११ इनके सिवाय, आवश्यक-नियुक्ति और मूलाचारके बारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ कहिओं बुहे हिं। पडावश्यक-अधिकारको और भी बहुतसी गाथाएँ परस्पर तं उवइसति जम्हा उवझाया तेण वुच्चंति ॥ मिलती जुलती हैं, जिनके नम्बगेकी सूचना पं० सुखलाल -ग्राव नि० ६६७ जीने अपनी 'सामायिक प्रतिक्रमण- रहस्य' नामक निब्बाणसाधए जोगे सदा जुंजंति साधवो। पुस्तक में की है । नियुक्ति-सहित 'श्रावश्यक' ग्रन्थका समा ते सव्वसाधवो॥ उत्तरार्ध वीरसेवामन्दिरमें न होनेके कारण मुझे उनकी -मूला०, ५१२ जाँचका अवसर नहीं मिल सका । अतः पाठकोंकी निव्वाणसाहए जोए जम्हा साहंति साहुणो। जानकारी अादिके लिये वे गाथा-नम्बर क्रमशः उक्त समा य सव्वभग्सु तम्हा ते भावसाहुणो । पुस्तक परसे नीचे दिये जाते हैं : -श्राव०नि०, १००२ मूलाचारकी गाथाएँ–नं० ५०५, ५२४, ५३८, सामाइयणिज्जुत्ती वोच्छामि जधाकमं समासण। ५१०, ५६०, ५६१, ५६३, ५६४, ५६५, ५६६, ५६७, आयरियपरंपरए जहागदं आणुपुबीए ॥ ५६८, ५६६, ५७६, ५७७, ५७८, ५६२, ५६३, ५६४, -मूला०, ५१७ ५६५, ५६६, ५६७, ५३६, ५४०, ५४१, ५४४, ५४६, सामाइयनिज्जुत्तिं वुच्छं उवएसियं गुरुजणेणं । ५४६, ५५०, ५५१, ५५२, ५५३, ५५५, ५५६, ५५७, आयरियपरंपराएण आगयं आणुपुवीए ॥ ५५८, ५५६, ५६६, ६००, ६०१, ६०३, ६०४, ६०५, -श्राव नि०,८७ ६०६, ६०७, ६०८, ६१०, ६१२, ६१३, ६१४, ६१५, इमी प्रकार मूनाचारकी १२५,५१४,५२५, ५२६, ६१७, ६२१, ६२६, ६३२, ६३३, ६४०, ६४१, ६४२, ५३०, ५३१ नंबरकी गाथाएँ आवश्यक नियुक्ति में ६४३, ६४५, ६४८, ६५६, ६६८, ६६६, ६७१, ६७४, क्रमशः नं०६६६, ६२६, ७६७, ७६८, ७६६,८०१ पर ६७५, ६७६, ६७७ । कुछ पाठभेद या थोड़ेसे शब्द-परिवर्तन के साथ उपलब्ध आवश्यकनियुक्ति की गाथाएँ-नं. ६२१, (१४६ होती हैं । परन्तु मूलाचारकी ५२६ नं० की गाथाका भाष्य), (१६० भाष्य),६५४, १०६६, १०७६,१०७७, उत्तरार्ध श्रावश्यक-नियुक्तिकी ७६८ नंबरकी गाथाके १०६६, १०६३, १०६४, १०६५, १०६६, १०६७,
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy