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________________ ३१४ अनेकान्त मारा हो, बावले कुत्तेने काटा हो, किसी पुरुषका व्याह न होता हो, स्त्री सन्तान न होती हो, होकर मरजाती हो, बेटा न होता हो, बेटियाँ ही बेटियां होती हो, अति कष्ट रहता हो, कोई पुरुष किसी स्त्री पर आशिक़ होगया हो और वह न मिलती हो, कोई झूठा मुक़दमा जीतना हो, किसीका किसीसे मनमुटाव कराना हो, किसीको जानसे मरवाना हो, किसीकी धनसम्पत्ति प्राप्त करनी हो, ये सब कार्य मन्त्रवादीके द्वारा सहजद्दीमें सम्पन्न होसकते हैं ! जो कार्य सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बरसों पूजा-भक्ति करने से सिद्ध नहीं हो सकता वह मन्त्रवादीके ज़रा ओठ हिलानेसे पूर्ण होसकता है ! परन्तु दूसरोंका ही, खुद मन्त्रवादीका नहीं, यह भी मन्त्रका एक नियम है !! मन्त्रके बीजाक्षर बड़े-बड़े ब्रह्मज्ञानियोंने अपने आत्मबल से जाने हैं; तभीतो इनमें इतना बल है कि चलते दरियाको रोक दें, गगनभेदी पहाड़को भी इधर से उधर करदें, सूरजकी चालको बदलदें और पृथ्वीको उलटकर धरदें, जलती आगको ठण्डी करदें, बजती बीनको बन्द कर दें, चलती हवाको रोकदें, जब चाहें पानी बरसादें और बरसते पानीको रोकदें, प्रकृतिका स्वभाव, सृष्टिका नियम, ईश्वरकी शक्ति मन्त्रबल के सामने कुछ भी हस्ती नहीं रखती है !. किसी धनवानको ऐसी व्याधि लगी हो कि जीवनकी आशा न रही हो, तो अनेक पडित ऐसा मन्त्र जपने बैठ जाएँगे कि मृत्यु पास भी न फटकने पाए, कोई ऐसा बैरी चढ़कर आवे, जो सेनासे परास्त नहीं किया जासकता हो तो, मन्त्रवादी उसको अपने बलसे दूर भगा देंगे ! ऐसी ऐसी अद्भुत शक्तियाँ मन्त्रोंकी गाई जाती हैं। ग़ज़नीका एक छोटा-सा राजा महमूद हिन्दुस्तान जैसे महाविशाल देशपर चढ़कर आता है। आवे, एक महमूद क्या यदि हज़ार महमूद भी चढ़कर आएँ तो मन्त्रकी एक फूल कसे उड़ा दिये जावेंगे ! फल इसका यह होता है कि बहुत थोड़ीसी सेना के साथ एक ही महमूद सारे हिन्दुस्तान में मन्दिरोंको तोड़ता और मूर्तियों को फोड़ता हुआ फिर जाता है, कोई चंतक भी नहीं कर पाता है, राजा महाराजाओं, बड़े-बड़े धनवानों विद्वानों [ फाल्गुण, वीर- निर्वाण सं० २४६५ और मन्त्रवादियोंकी हज़ारों स्त्रियोंको पकड़कर लेजाता है, जो काबुल में जाकर दो-दो रुपयेको बिकती हैं ! हिंदुस्तानका मन्त्रबल यह सब तमाशा देखताही रह जाता है ! इस प्रकार महमूद १७ बार हिन्दुस्तान आया और बेखटके इसी प्रकार के उपद्रव करता हुआ हँसताखेलता वापस जाता रहा ! यह सब कुछ हुआ, परन्तु मन्त्रोंके द्वारा कार्य सिद्ध करानेका प्रचार ज्योंका त्यों चना ही रहा ! महमूद पर मन्त्र नहीं चला, क्योंकि वह राजा था, राजा पर मन्त्र नहीं चलता है, बस इतना-सा कोई भी उत्तर काफ़ी है !! संसार के नियमानुसार काम करने में तो बहुत भारी पुरुषार्थ करना पड़ता है – किसान ज्येष्ठ आपकी धूपमें दिनभर हल जोतता है, फिर बीज बोता है, नौराई करता है, पानी देता है, बाढ़ लगाता है, रातों जागजागकर रखवाली करता है, खेत काटता है, गाहता है. उड़ाता है, तब कहीं छः महीने पीछे कुछ अनाज प्राप्त होता है अतिवृष्टि होगई, ओला काकड़ा पड़ गया, टिड्डीदलने खेत खालिया तो सालभर की मेहनत यों हीं बर्बाद गई । परन्तु मन्त्रके द्वारा कार्यकी सिद्धि कराने में तो मन्त्रवादीकी थोड़ी-सी सेवा करनेके सिवाय और कुछ भी नहीं करना पड़ता है, इस कारण पुरुषार्थ करनेमें कौन जान खपावे ? अकर्मण्य होकर आराम के साथ क्यों न जीवन बितायें ? फल इस अकर्मण्यताका यह हुआ कि वह भारत जो दुनिया भरका सरताज गिना जाता था, काबुल जैसे छोटेसे राज्यका गुलाम बन गया ! बेखटके मुसलमानोंका राज्य होगया, मन्दिर तोड़ २ कर मस्जिदें बननी शुरू होगई, गौ माताकी हत्या होने लगी नित्य कई लाख जनेऊ टूटने लगे और मुसलमान बनाये जाने लगे ! राज्य गया, मान गया और इसीके साथ धर्म गया और ईमान गया, सब कुछ गया, परन्तु नहीं गया तो मन्त्रशक्ति पर विश्वास नहीं गया । अकर्मण्यका चाहे सब कुछ जाता रहे, परन्तु उससे पुरुषार्थ कदाचित भी नहीं होसकता है । इस वास्ते अब बेचारे हिन्दुस्तानियोंने मुसलमानोंका सहारा लेना शुरू कर दिया है, वे अपना कलमा पढ़कर हमारे बच्चों पर
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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