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________________ sexEXEMEIKNEMENCE:MXXEXEXXEMEANITY बौद्ध तथा जैनधर्म पर एक सरसरी नज़र , [ ले० श्री० बी० एल० सराफ बी० ए० एलएल० बी० वकील __ मंत्री सी० पी० हिन्दी साहत्य सम्मेलन ] aarakARMIKAKIRAKAR 100000000000000000 वेदोक अशरीरी जन्ममें भी विरोधी धाग छुपी यालिग़ होजाना सावितकर हिन्दूसमाजको "पुत्रं मित्र हुई दीखती है, यदि वैदिक ऋषि या वैदिक स- वदाचरेत्" वाली उक्ति पर चलनेको वाध्य किया और भ्यता को माननेवाले पा- g00000000000000000000000000000000000g हिन्दूममाजको अपने सामा शाक पहिनते हैं, ईश्वरको इस लेख के लेखक वकीलसाहब एक प्रसिद्ध अजैन । जिक तथा धार्मिक संगमानते हैं और पशुबल विद्वान् हैं, जो कि मध्यप्रदेशकी साहित्यिक विद्वत्परिपद के उनमें आये हुए विकारोंको करते हैं, तो एक ओर 8 मेम्बर भी हैं। थोड़ीसी प्रेरणाको पाकर आपने जो धो डालना पड़ा-पशु. ऐसे नग्न क्षपणकोंकी यह लेख भेजनेकी कृपाकी है उसके लिए आप विशेष हिंसासे मुग्व मोड़ना पड़ा भी भारी संख्या है जो धन्यवाद के पात्र हैं। लेख परमे सहज ही में यह जाना और जातियोंकी असमावस्त्र नहीं पहिनना चाहते ३ जासकता है कि हमारे उदार-हृदय अजैन बन्धु जैन- नताका दुर्ग भगवान के हैं, जगत्का ईश्वरका 8 धर्मका अध्ययन करने के लिये भी कितना परिश्रम उठाने मन्दिरके मामने ध्वंम होअस्तित्व नहीं मानते तथा है, कहां तक उसमें सफल होते हैं और उसके विषय में गया । वह विरोधका युग हिंसाको गवारा नहीं करते कितना सुन्दर विचार रखते हैं। तुलनात्मक दृष्टिको खतम हुए सैंकड़ों वर्ष और उसके विरोध 8 लिए हुए यह लेख अच्छा पढ़ने योग्य है। और इसके 8 बीत गये । जैनधर्म तथा अपनी आवाज़ उठाते हैं। 8 अन्त में जैनियोंके तीन कर्तव्योंकी ओर जो इशारा किया बौद्धधर्मकी उस कृपाको इन विरोधियोंने ही मालूम गया है वह वास तौरसे जनियाँक ध्यान देनेकी वस्तु भी जो उहोंने सजीव हिन्दू होता है आगे चलकर है। यदि हमारे जैनी भाई अपने उन कर्तव्योको पूरी 8 जाति परकी, लम्बाकाल सुसंस्कृत जैन और बौद्धो-8 तरहसे पालन करें तो इसमें मन्देह नहीं कि भाजके होचुका, पर न हमने ही यह का रूप धारण किया है। वातावरण में जैन-धर्मके असंख्य प्रेमी पैदा होसकते हैं। सोचा कि इन उपकारी वि. इन दोनों धर्मोंने हिन्दूधर्म । राधियोंके अन्य सिद्धान्तों -सम्पादक के प्रति कई अमर उपकार B. 0000000000000000000000000000Nmanna MOMDVD00000000000000000003 की ओर भी लक्ष्य दिया किये हैं। हिन्दूसमाजके इन दो झगड़ेलू किन्तु जावे,शायद उनमें भी कहीं छुपा हुआ विरोधका अन्त करने सत्याग्रही पुत्रोंने अन्तमें विरोध करते करते अपना वाला स्याद्वाद जैसा हीरा निकल पावे, और न 000000000000000000000000 000000000
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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