________________
वर्ष २ किरण १
अनेकान्तवाद
कर कृतार्थ होऊँ या उससे भिन्न जीवात्मा समझं ? साहचर्य सिद्ध करता है। यदि सचमुच मैं क्षणिक हूँ-उत्तरकालीन क्षणमें अनेकान्तवाद बतलाता है कि वस्तु द्रव्यही यदि मेरा समूल विध्वंस होने जारहा है तो रूप भी है पर्यायरूप भी। मनुष्य, सिर्फ मनुष्यफिर धर्मशास्त्रों में उपदिष्ट अनेकानेक अनुष्ठानोंका ही नहीं है बल्कि वह जीव भी है और जीव सिर्फ क्या प्रयोजन है ? क्षणभंगुर आत्मा उत्पन्न होते जीवही नहीं वरन् मनुष्य, पशु आदि पर्याय-रूप ही नष्ट होजाता है तो चारित्र आदि का अनुष्ठान भी है। इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु द्रव्य भी है और कौन किसके लिये करेगा ? यदि मैं क्षणभंगुर न पर्यायभी है। यद्यपि द्रव्य और पर्यायका पृथक्होकर कूटस्थ नित्य हूँ-मुझमें किसी भी प्रकार करण नहीं किया जासकता फिरभी उनकी भिन्नका परिवर्तन कदापि होना संभव नहीं है, तो अन
ताका अनुभव किया जासकता है। यदि कोई न्तकाल तक मैं वर्तमान कालीन अवस्थामें ही
कागजके एक टुकड़ेको अग्निमें जलादे और इस रहूँगा । फिर संयम और तपश्चरण के संकटों में
प्रकार उसकी अवस्था-पर्यायको परिवर्तित करदे पड़ने की क्या आवश्यकता है ?
तो ऐसा करके वह उसके जड़त्वको कदापि नहीं और यदि वेदान्त-दर्शनकी प्ररूपणाके अनुसार
बदल सकता। इससे यह स्पष्ट है कि पर्यायोंका प्रत्येक पदार्थ परमब्रह्म ही हैं तबतो हमें किसी
उलटफेर तो होता है परन्तु द्रव्य सदैव एक-सा प्रकारकी साधना अपेक्षित ही नहीं है। ब्रह्मसे उन बना रहता है। पर्यायोंके परिवर्तनकी यदि हम तर पद तो कोई दसरा है नहीं जिसकी प्राति सावधानोमे अनुभव करें तो हमें प्रतीत होगा कि लिए उद्योग किया जाय ? यदि परमात्मा मूलतः
परिवर्ततका क्रम प्रतिक्षण जारी रहता है। कोईभी जीवात्मासे भिन्न है तो जीवात्मा कभी परमात्मपद
नई वस्तु किसी खास नियत समयपर पुरानी नहीं का अधिकारी न हो सकेगा । फिर परमात्मपद
होती। बालक किसी एक नियत समय पर युवक प्राप्त करनेके लिए प्रयास करना निरर्थक है।।
नहीं बनता । बननेका क्रम प्रतिक्षणही चालू
रहता है। इस प्रकार द्रव्यकी पर्यायें प्रतिक्षण पलइस प्रकार विरोधी विचारोंके कारण किसी
टती रहती हैं। अत: पर्यायकी अपेक्षा वस्तुको भी जिज्ञासुमुमुक्षका गड़बड़में पड़ जाना स्वाभा- प्रतिक्षण विनश्वर कहा जासकता है। किन्तु द्रव्य विक है। ऐसे समय जब कोई व्यक्ति निराश अपने मल स्वरूपका कभी परित्याग नहीं करता। होजाता है तो अनेकान्तवाद उसका पथ-प्रदर्शन जो जीव है वह भले ही कभी मनुष्य हो, कभी पशुकरके उसे उत्साह प्रदान करता है। वह इन पक्षी हो, कभी कीड़ा-मकोड़ा हो, पर वह जीव तो विरोधोंका मथन करके उलझी हई समस्याओंको रहेगा ही। द्रव्यरूपसे पदार्थका व्यय कदापि नहीं सुलझा देता है। अनेकान्तवाद विरोधी प्रतीत
हो सकता। अत: द्रव्यकी अपेक्षा प्रत्येक वस्तु
त नित्य कही जासकती है। इस प्रकार अनेकान्तहोनेवाले क्षणिकवाद और नित्यवादको विभिन्न वाद नित्यत्व और अनित्यत्वका समन्वय करता दृष्टिबिन्दुओंसे अविरोधी सिद्ध करके उनका है।