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________________ २७४ अनेकान्त [ माघ, वीर - निर्वाण सं० २४६५ किया ? यह मेरे किसी पूर्व संचित पुण्यका उदय ही फिर आप पर काफ़ी सख्ती होगी और दवा भी पीनी समझना चाहिए । होगी । सिपाहियोंकी सूचना पर साहब मेरे पास आया और दवा न पीनेका कारण पूछा। मैंने दवा पीनेमें अपनी असमर्थता प्रकट की तो बोला : “यदि बीमार पड़ गये तब ?” मेरे मुँह से अनायास निकल पड़ा“यदि बीमार होजाऊँ तो आप कड़ीसे कड़ी सज़ा दे सकेंगे ।" साहब ऑलरायट कहकर चला गया ? किन्तु सजाकी पूरी अवधि तक मुझे दवाकी तनकि भी आव श्यकता न पड़ी । बुखार, खांसी, जुकाम, क़ब्ज़ वगैरह मुझे कुछ भी नहीं हुआ। इतने अर्से में एक भी तो शिकायत नहीं हुई। जबकि अन्य साथी दो-तीन माह में ही जेल से बीमारियोंका पु ंज बनकर आते थे । २ ) सन् १९३० मं, असहयोग आन्दोलन में, मुझे २ वर्षका कारागार हुआ, तब वहां मोन्टगुमरी जेल ( पंजाबका उन दिनों काला पानी ) में मलेरिया बुखार किसीको न आजाय, इस ख़याल से प्रत्येक कुदीको जबरन कुनैन मिक्शचर पिलाया जाता था । उन दिनों विलायती दवासे मुझे परहेज़ था । अतः जब वे मेरी ओर आये तब मैंने दवा पीनेसे कृतई इन्कार कर दिया। कुछ लिहाज़ समझिये या श्रात्म-विश्वास समझिये, सिपाहियोंने मुझे जबरन दवा नहीं पिलाई। किन्तु यह अवश्य कहा कि दवा न पीनेकी सूचना हमें साहब ( सुपरिटेण्डेण्ट जेल) को अवश्य देनी होगी और * * कात पर लोकमत (१६) बाबा भागीरथजी वणीं "अनेकान्त" की दो किरणें मैंने पढ़ी हैं । 'अनेकान्त' अपने ढंगका एक ही पत्र हैं । जैनियों में सम्भवतः अभी इसे अपनानेकी योग्यताका अभाव है। मेरी शुभ कामना है कि अनेकान्त विश्वव्यापी होकर घर-घर में वीर प्रभुका सन्देश पहुँचाने में समर्थ हो ।” ( २० ) श्री उपाध्याय मुनि अमरचन्दजी 'कविरत्न' "आज एक बहुत आनन्दका दृश्य देख रहा हूं । सात वर्ष पहलेका मेरा पाठ्यपत्र 'अनेकान्त' पुनः प्रकाशित होकर समाजके सम्मुख आया है और आते ही अपनी पुरानी पुनीत स्मृतिको फिरसे ताजा बना दिया है। क्रमशः जैनसंसार में यह पहलाही पत्र है, जो इस ढंगमे निकल रहा है । विद्वतापूर्ण लेखों का संग्रह, वास्तव में हर किसी सहृदय विद्वानसे प्रशंसा पा सकता है। साथ ही सांप्रदायिक वातावरण से अपने आपको अलग रखनेका जो संकल्प है, वह और भी शतशत बार अभिनन्दनीय है। श्री मुख्तार साहबकी मँजी हुई लेखनीका चमत्कार सम्पादकीय टिप्पणीके रूपमें, एक ख़ास दर्शनीय वस्तु है । हृदय से अनेकान्तकी सफलता चाहता हूँ एवं चिरायुके लिये मंगल कामना करता हूँ ।" - क्रमशः
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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