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________________ वर्ष २, किरण ४] धार्मिक-वार्तालाप २६७ वंदना करै वा मारे पीटे, सबसे उनका समभाव ही उनका नग्न-पना बुरा नहीं मालूम होता है और न किसी रहता है । सबहीका वे हित-चिंतन करते हैं, सब ही के मन में कोई विकारही उत्पन्न होता है। कारण इसका का कल्याण करते हैं। साथ ही बस्तीसे दूर बन में यही है कि उन बच्चों के मनमें अभी तक किसीभी प्रकार रहते हैं, जेठ प्राषाढ़की कड़ाके की धूप, सावन-भादों. का कोई काम विकार पैदा नहीं हुआ है न उनकी चेष्टा की मूसलाधार वर्मा, पोह-माघका ठिठराने वाला पाला, से ही किसी प्रकार के काम विकारकी प्राभा पाती है, सब उनके नंगे शरीर पर पड़ते हैं, परन्तु उनको कुछ इसीसे उनका नग्न रहना किसीको बुरा मालूम नहीं भी पर्वाह नहीं होती, कुछ भी यत्न वे उसमे बचनेका होता, यहां तक कि यह खयाल भी नहीं आता कि यह नहीं करते हैं। ऐसे आत्म-ध्यानियों को लंगोटी बांधने नंगा है । इस ही तरह सच्चे जैन-साधुओंके मन में भी किसी की क्या पर्वाह हो सकती है ? प्रकारका विकार नहीं होता है। परम वीतरागता उनकी मथुराप्रसाद तो क्या वह आबादी में आते ही चेष्टासे झलकती है और कामवासना की तो गंध भी नहीं हैं-मनुष्योंसे दूर ही रहते हैं ? उनमें नहीं होती है। इसी कारण उनके दर्शनासे ज्योतिप्रसाद-आते हैं, जब देखते हैं कि खाना- गृहस्थियों को भी वीतरागके भाव पैदा होते हैं-राग-भाव पीना दिये बिना किसी प्रकार भी यह शरीर स्थिर नहीं तो किसी प्रकार पैदा ही नहीं हो सकते । हां, लंगोटी रह सकेगा, तब आहार के वास्ते ज़रूर बस्तीमें आते हैं। उस बांधनेस ज़रूर उनकी वीतराग मुद्रामें फ़र्क भाता है। समय जो कोई श्रावक शुद्ध आहार तय्यार बताकर उन्हें इसी कारण लंगोटो बंद त्यागी (ऐल्लक दुलक) के दर्शनों बुलाता है, उसके घर जाकर खड़े-खड़े कुछ आहार ले सं वीतरागताका इतना भाव नहीं होता जितना कि नग्न लेते हैं और फिर बनमें चले जाते हैं। रात्रिको भी साधुके दर्शनोंस होता है। यह तो प्राकृतिक बात है, आत्म-ध्यान में ही लगे रहते हैं। जैसा कोई होगा वैसा ही उसका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा। मथुराप्रसाद-अच्छा, ऊँच दर्जेके तपम्वी होने मथुराप्रसाद- तो क्या आपके साधु कोई भी वस्तु पर भी यदि वह लंगोटी बांध लिया करें तो क्या हरज अपने पास नहीं रखते हैं ? हो ? आहार के लिये तो बस्ती में उनको आना ही पड़ता ज्योतिप्रसाद -रखते हैं, एक तोशान-प्राप्तिके वास्ते हैं, वन में भी लोग उनके दर्शनोंको ज़रूर जाते होंगे, शास्त्र रखतं हैं; दूसरे मोरके पंख वा अन्य किसी पक्षी अब यदि उनके हृदय में किसी प्रकारकी कोई वासना के मुलायम पगेकी कुची रखते हैं, जिससे जहाँ बैठना नहीं रही है तो भी उनको नग्न देखकर गृहस्थियोंके होता है, वह स्थान जीव-जन्तुओंसे साफ़ कर लिया जाता मनमें तो विकार आ सकता है और खासकर स्त्रियोंको है और इस तरह कोई जीव उनके शरीरसे दबकर मर तो अवश्यही बुरा मालूम होता होगा। न जाय, इसकी पूरी अहतियात की जाती है, तीसरे ज्योतिप्रसाद-सबही घरोमें बच्चे नंगे फिरते हैं, कमण्डलु जिसमें कुछ पानी रहता है, और वह टट्टी जाने गली-बाज़ारोंमें भी जात-आते हैं, मां, बहन, दादी, पर गुदा साफ करनेके काम आता है। बस इन तीन नानी, नौकरानी आदि सब ही उनको नग्न अवस्था वस्तुओंके सिवाय और कुछ नहीं रखते हैं। में अपनी छातीसे चिपटाकर सुलाते हैं, किसीको भी मधुराप्रसाद-कमण्डलु तो शायद काम्का होता
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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