SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष २, किरण ४] श्री नाथूराम प्रेमी २५५ हैं । वक्ताभी वह नहीं हैं, वह मंच पर आकर बोलनेसे काममें चुस्त, व्यवहार में तत्पर, वह एक सच्चे मित्र बेहद बचते हैं । यह नहीं कि उनके विचार सुलझे नहीं हैं। बुराईकी उनमें क्षमता नहीं । स्वभावसे धर्म-भीरु । हैं, या भावनाकी कमी है। सो तो एक बार जब वह मालूम होता है कि बहुत चेष्टा पूर्वक उन्हें असत् प्रवृत्ति मेरे अनुरोध पर बोले; उनकी वक्तृता अतिशय सुसंगत को नहीं जीतना पड़ता। वैसी प्रवृति असलमें उनमें थी। बेशक जोश उसमें नहीं था। न जोश उभारनेकी निसर्गसे ही दुर्बल है । अनायास वह नेक हैं । बदी कोई उसमें शक्ति थी। स्फूर्ति नहीं, अनुभवकी उसमें अपील उनसे मानों अत्यन्त प्रयत्न पूर्वक ही हो सकती है । वह थी। मूलसे सजन हैं। प्रेमीजी कर्मशील कार्यकर्ता हैं । वाग्मिताका उनमें मैं मानता हूँ कि उनके जीवन-कार्यमें प्रामाणिक अभाव है। लहरसे उल्टे नहीं चल सकते। लेकिन सदवृत्तिकी एक मूल धारा रही है। और इसीके लहरमें बहते भी नहीं। और विघ्न-बाधाओंके बीच कारण उनके जीवन में हम सबके लिए बहुत कुछ अपने काममें लगे रह सकते हैं। अनुकरणीय है। * * * दर्शन और बन्धन! यदि बन आए तो चरणों पर, मैं तर मन्दिर में प्रवेश यह तन मन धन दं सभी वार ! गदगद होकर कर रहा नाथ ! पर मैं तो विकसित पुष्पराशि-- पर चरणों को तो घेरे हैंसे पूर्ण रहित हूँ, रिक्त हाथ ! ये चढ़े हुए अनगिनत हार ! (२) तत्काल इन्हें चुन चुन करके, यदि निश्चय सत्य-मार्ग पर हूँ, मैं फेंक क्यों न अभी उतार ! उस में न योग्यता का छिपाव%B तब तो यह बन्धन है कलङ्क ! आते है जो आहादित हो, दर्शन-बन्धन में क्या लगाव ? तेरे दर्शन की लिये प्यास ! (३) ये पुष्प-प्रदर्शन कर देतेशंकाओं से होकर स्वतन्त्र, तेरे पद-चुम्बन से निराश !! हीनत्व, प्रभाव, इसे न मान; निर्बलता को आमन्त्रित कर, तो फिर क्यों मांगू क्षमा-दान? ये है भक्तों का खण्ड-मान, सत्ताधारी का अहंकार ! पर बात यहीं तक नहीं अन्त; इन पुष्पहार ने किया बन्दपाया हूँ यह लेकर विचार चरण-स्पर्शन का दिव्य द्वार !! (रचयिता :-श्री० कल्याणकुमार जैन 'शशि')
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy