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निहासिकमहामा
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प्राचार्य हेमचन्द्र
[ लेo-श्री रतनलाल संघवी न्यायतीर्थ, विशारद ]
प्राक-परिचय
भारतीय साहित्य के प्रांगणमें प्रादुर्भत श्रेष्ठतम अलंकार, नीति योग, मन्त्र, कथा, चारित्र, आध्यात्मिक
'विभूतियों में से कलिकाल सर्वज्ञ श्राचार्य हेमचन्द्र और दार्शनिक आदि सभी विषयों पर आपकी सुन्दर भी एक पवित्र और श्रेष्ठतमदिव्य विभूति हैं । विक्रम संवत् और रसमय कृतियाँ उपलब्ध हैं । संस्कृत और प्राकृत ११४५ की कार्तिक पूर्णिमा ही इन लोकोत्तर प्रतिभा- दोनोंही भाषाओं में आप द्वारा लिखित महत्वपूर्ण और संपन्न महापुरुषका पवित्र जन्मदिन है। इनकी अगाधि भावमय साहित्य अस्तित्व में है। कहा जाता है कि बुद्धि, गंभीरज्ञान और अलौकिक प्रतिभाका अनुमान अपने बहुमूल्य जीवन में आपने साढ़े तीन करोड़ करना हमारे जैसे अल्पज्ञोंके लिए कठिन ही नहीं बल्कि श्लोक प्रमाण साहित्यकी रचना की थी। किंतु भारअसम्भव है। आपकी प्रकर्ष प्रतिभासे उत्पन्न महान् तीय साहित्य के दुर्भाग्य से उसका अधिकांश अंश नष्ट मंगलमय ग्रन्यराशि गत सातसौ वर्षोंसे संसार के सहृदय प्रायः हो चुका है। लेकिन यह परम प्रसन्नताकी बात विद्वानोंको पान.द-विभोर करती हुई दीर्घतपस्वी भग- है कि जो कुछ भी उपलब्ध है, वह भी आपकी उज्ज्वल वान् महावीर स्वामी के गूढ़ और शांतिप्रद सिद्धान्तोंका और सौम्य कीर्तिको सदैव बनाये रक्खेगा । समस्त सुन्दर रीति से परिचय करा रही है।
भारतकी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्वकी संस्कृतसाहित्यका एक भी ऐसा अंग अछूता नहीं छूटा प्राकृत-प्रिय विदुषी जनता आपके दैवी प्रन्योंके लिए है, जिस पर कि आपकी अमर और अलौकिक लेखनी सदैव ऋणी रहेगी। न चली हो, न्याय, व्याकरण, काव्य कोष, छंद, रस, महान् प्रतापी राजा विक्रमादित्यको विद्वत्-समिति