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________________ २१६ अनेकान्त [पौष, वीर-निर्वाण सं० २४६५ सदनुवानपरायण, मृदु-मितभाषी, विनय-नय- अपने नगरमें लेगया था । अवन्तिवर्माके चाँदीके संयमके अद्भतम्थान तथा अप्रतिम प्रतापशाली थे। सिक्कों पर विजितावनिरवनिपतिश्रीअवन्तिवर्मा इन्होंने रणिपद्रपुरका तथा रणिपदमटका उद्धार दिवंजयति" लिखा रहता है तथा संवत २५० पढ़ा एवं सुधार किया था और वहीं एक शिवमन्दिर गयाहे *। यह संवत संभवत: गुप्त-संवत है। तथा वापीका भी निर्माण कगया था ।' उसी वापी. डा० फलीट के मतानुमार गुप्तसंवत ई० सन ३२० पर उक्त प्रशम्ति बुढ़ी है। की २६ फर्वरी को प्रारम्भ होता है + । अतः ५७० ___ इनकी विद्वत्ताक विषयमं शिलालेखके ये ई० में अवन्तिवर्माका अपनी मुद्राको प्रचलित करना श्लोक पर्याप्त है इतिहाससिद्ध है । इस समय अवन्तिवर्मा राज्य "सिद्धान्तेषु महेश एप नियता न्यायक्षपादो मुनिः। कर रहे होंगे तथा ५७० ई०के आसपास ही वे गभीर च कणाशिनस्तु कणभुक्शास्त्रे श्रुतौ जैमिनिः ॥ पुरन्दग्गुरुको अपने राज्यमें लाए होंगे । ये सारव्ये नल्समतिः स्वयं च कपिलो लोकायते सद्गुरुः। अवन्तिवर्मा मौखरी वंशीय राजा थे । शैव होने बुद्धो बुद्धमते जिनोकि जिनः को बाथ नाय कृती ॥ के कारण शिवोपासक पुरन्दरगुरुको अपने यहाँ यद्भ तं यदनागतं यदधुना किंचि चद्रच (तं) तं । लाना भी इनका ठोकही था। इनकं समय-संबन्धमें सम्यग्दर्शनसम्पदा तदग्विल पश्यन् प्रमयं महत् ।। दृसरा प्रमाण यह है कि -वैसवंशीय राजा हर्षवर्द्धनसर्वशः स्फुटमैप कापि भगवानन्यः क्षिती सं(श)करः। की छोटी बहिन राज्यश्री अवन्तिवर्माकं पुत्र धत्तं किन्तु न शान्नधीविषमहग्रौद्रं वपुः केवलम् ॥” ग्रहवाको विवाही गई थी। हर्पका जन्म ई०५६० इनमें बतलाया है कि व्योमशिराचार्य-शैव में हुआ था। राज्यश्री उससं १ या २ वर्ष छोटी सिद्धान्तमें स्वयं शिर, न्यायमें अक्षपाद, थी। ग्रहवर्मा हपसे ५-६ वर्ष बड़ा जहर होगा। वैशेषिक शास्त्रमं कणाद, मीमांमामें जैमिनि, अनः उसका जन्म ५८४ ई. के करीबका मानना सांख्यमें कपिल, चार्वाक-शामें बृहस्पति, चाहिए । राज्यकाल ६०० से ६०६ नक रहा है। बुद्धमतमें युद्ध नथा जिनमन में स्वयं जिनके समान अवन्तिवर्मा का यह इकलौता लड़का था। अतः थे। अधिक क्या: अनीतानागतवर्तमानवर्ती यावत मालूम होता है कि ५८४ म अथान अन्तिवमा प्रमेयोंको अपनी मम्यग्दर्शनसम्पत्तिम स्पष्ट देखने की ढलती अवस्था में यह पैदा हुआ होगा। अस्तुः जानने वाले सर्वज्ञ थे और ऐसा मालूम होता था यहाँ तो इतना ही प्रयोजन है कि ५७० ई. के कि मात्र विपमनत्र (तृतीयनत्र ) तथा रौद्रशरीर श्रासपास ही अवन्तिवा पुरन्दरको अपने यहाँ को धारण किए बिना वे पृथ्वी पर दूसरे शङ्कर लेगए थे। भगवान ही अवतरे थे । इनके गगनेश, व्योमशम्भु, व्योमेश, गगनशशिमोलि श्रादि नाम भी थे। ___ *देखो, भारतके प्राचीन राजवंश. द्वि० भा० पृ०३७५ । शिलालेखके आधारसं समय-व्योमशिवक देखो, भारत के प्राचीन राजवंश. द्वितीय भाग पूर्ववर्ती चतुर्थगुम पुरन्दरको अवन्तिवर्मा राजा पृ० २२९ ।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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