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वर्ष २ किरण ३]
क्या सिद्धान्तग्रन्थों के अनुसार सब ही मनुष्य उच्चगोत्री हैं ?
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नहीं है । इसी तरह म्लेच्छोंमें ही नीचगोत्रका इस लेख के भेजनेले कई रोज पहले श्रापको मिल व्यवहार मानना भी ठीक नहीं है। अच्छा होता चुकी होगी तथा आवश्यकता होनेपर श्राप और यदि शास्त्रीजी धवलसिद्धान्तके आधार पर लिखे भी कुछ दिनके लिये इस लेखका भेजना रोक हुए. मेरे उस लेग्वका भी विचार साथमें कर सकते थे। उस लेखपर आपका विचार आजाने डालते जो 'ऊँचगात्रका व्यवहार कहाँ ? इस पर मुझे भी प्रकृत विपयपर विचार करनेका शीर्षकके साथ 'अनेकान्त'की दूसरी किरणम प्रका- यथेष्ट अवसर मिलता । श्राशा है शास्त्रीजी अब शित हुआ है। क्योंकि आपके इस लेग्यविषयका-. उक्त लेम्बपर भी अपना विचार शीघ्र भेज देने की समस्त कर्मभूमिज मनुष्यों के सिद्धान्तयन्थानुसार कृपा करेंगे। ऊँचगोत्री होनके विचारका- उस लेखके साथ पूरा
-सम्पादक। पूरा सम्बन्ध है। अनेकान्तकी उत्तः किरण भी
'समृद्ध अवस्था तो नम्रता और विनयकी विम्फूर्ति कगे, लेकिन हीन स्थितिके समय मान-मर्यादाका पूग खयाल रकवा ।'
'जमीनकी खामियतका पता उसमें उगने वाले पौधेसे लगता है; ठीक इसी तरह, मनुष्यके मुग्वसे जो शब्द निकलते हैं उनसे उसके कुलका हान मालूम हो जाता है।'
'अच्छी मंगतसे बढ़कर आदमीका सहायक और कोई नहीं है। और कोई भी चीज़ इतनी हानि नहीं पहुंचाती जितनी कि बुरी सङ्गत ।'
-निम्बल्लवर।