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________________ भगइन, वीर निर्वाण स० २४६४] डाकिया १७३ लेखक-श्री भगवत स्वरूप जैन 'भगवत' गांव के एक कोने में उसका घर है। घर कहो शाप एक ऐसी स्त्री की कल्पना कीजिए, जो या झोंपड़ी, जो कुछ है, वही है। सामने टूटा-सा "ग़रीबी के सबब आँसू बहाया करती है, छप्पर, फिर गिरती हुई मिट्टी की जरा लम्बी-सी पति की अनुपस्थिति के कारण दिल मसोस कर दहलीज । इसके बाद-ऊबड़-खाबड़-सा चोक जिन्दगी बिताती है, और आधी दर्जन बच्चों के और एक कोठा, जिसका पटाव ऐसा, जैसे अब मारे घड़ी भर चैन नहीं लेने पाती। इसके बाद भी गिरा, अब गिरा! जो कुछ रहता है, उस उसका स्वास्थ्य पूरा करता वति होती है तो घर में पांव रखने भर को है-कभी जुकाम; कभी बुखार, कभी कुछ और सूखी जगह नहीं रहती। बच्चों का घर और बेहद कभी कुछ। तो समझ लीजिए कि वह रूपा है। उसका कीच, यह दोनों बातें उसे और भी घृणास्पद बना पति अहमदाबाद के किसी 'मिल' में नौकर है। देती हैं। चौक में दीवारों की लगास से कुछ सब्जी तीस दिन,-हाँ ! पूरे तीस दिन, बाद उसे पन्द्रह हो पड़ी है, जो बजाय सुन्दरता बढ़ाने के-शायद रुपये मिलते हैं। जिस में दस रुपये का वह 'मनि- कीड़ा-मकोड़ा न हो-भय का उत्पादन करती है। आर्डर' कर देता है। बचते हैं चार रुपये चौदह रूपा का मन भय से भर जाता है, जब उसके आने!-अगर खुश किस्मती से कोई 'फायन' न बच्चे घास-पात की और खेलने लगते हैं। पर करें हो जाए तब ! वे बाकी तीस दिन तक पेट की क्या ?-लाचारी है।... ."औरत का दिल इतना ज्वाला बुझाने के काम आते हैं। करता चला जारहा है, वह क्या थोड़ा है ?-और और इधर उस पर भी इस भरे-पूरे गांव में कोई उसका हम__छः बच्चे और उनकी मां-रूपा, प्रतीक्षा की दर्द नहीं, हितू नहीं, दयालु नहीं। गोद में बैठकर तीस दिन काट पाते हैं ! सैकड़ों अरमान मनि-आर्डर आने तक मन में कैद रहते हैं। लेकिन आते ही किधर उड़ जाते हैं, पता नहीं ! आखिर खर्च भी तो है, हल्के पूरे सात एक महीने बादप्राणियोंका । पररूपा ?....हाँ, रूपा उन दश रुपयों रात का वक्त है, मेघ बरस चुका है, लेकिन में पूरा एक महीना किस तरह काटती है, वह थोड़ी फुहारें अब भी शेष हैं । प्रकृतिस्थली अन्धकौन जाने -किसे पर्वाह, जो उसके जीवन- कार की चादर में मुँह छिपाए पड़ी है। समीर की यापन पर नजर डाले। चंचल प्रवृत्ति अपने कार्य में व्यस्त है । पन-गर्जना
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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