SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० अनेकान्त कार्तिक, वीर-निर्वाण सं० २४६५ अनुवादितरूप संस्कृत लोकविभागमें पाया जाता है। शकराजा अथवा शकसंवतसे ६०५ वर्ष ५ महीने चंकि उस लोकविभागका रचनाकाल शकसं० ३८० पहले हुआ है, जिसका उल्लेख त्रिलोकप्रज्ञप्ति में भी है,अतः त्रिलोकप्रज्ञप्ति के रचियता यतिवृषभ शकसं० पाया जाता है । एकहजार वर्ष में से इस संख्या३८० के बाद हुए हैं, इसमें जराभी संदेह नहीं है। को घटानेपर ३६४ वर्ष ७ महीने अवशिष्ट रहते हैं। अब देखना यह है कि कितने बाद हुए हैं ? यही (शकसंवत ३६५) कल्किकी मृत्युका समय है। (३) त्रिलोकप्रज्ञप्ति में अनेक कालगणनाओंके और इसलिये त्रिलोकप्रज्ञप्ति का रचनाकाल शकसं० आधारपर, चतुर्मुखनामक कल्किकी मृत्यु वीरनिर्वाण १०५ के करीबका जान पड़ता है, जबकि लोकविभाग स कहजार वर्ष बाद बतलाई है, उसका राज्य- को बनेहुए २५ वर्ष के करीब होचुके थे, और यह काल ४२ वर्ष दिया है, उसके अत्याचार तथा मारे अर्सा लोकविभागकी प्रसिद्धि तथा यतिवृषभ तक जानेकी घटनाओंका उल्लेख किया है और मृत्युपर उसके पहुँचनेके लिये पर्याप्त है। उसके पुत्र अजितंजयका दो वर्षतक धर्मराज्य होना लिखा है। साथही, बादको धर्मकी क्रमशः हानि (४) कुर्ग इन्सक्रिप्शन्स ( E. C. I. ) में बतलाकर और किसी राजाका उल्लेख नहीं किया है। मर्कराका एक ताम्रपत्र प्रकट हुआ है, जो कुन्दकुन्दके इस घटनाचक्र परसे यह साफ़ मालूम होता है वंशमें होनेवाले कुछ आचार्यों के उल्लेखको लिये हुए कि त्रिलोकप्रज्ञप्ति की रचना कल्किराजाकी मृत्युसे है और जिसमें उसके लिखेजानेका समय भी शक१०-१२ वर्षसे अधिक बादकी नहीं है। यदि अधिक संवत ३८८ दिया है। उसका प्रकृत अंश इस बादकी होती तो ग्रंथपद्धतिको देखते हुए यह संभव , प्रकार है:नहीं था कि उसमें किसी दूसरे प्रधान राज्य अथवा राजाका उल्लेख न किया जाता । अस्तु; वीरनिर्वाण * "णिव्वाणे वीरजिणे छव्वाससदेसु पंचवरसेसु । *इस प्रकरणकीकुछ गाथाएँ इसप्रकार है. जोकि पालकादि राजाओंके राज्यकाल ९५८ का उल्लेख करने पणमासेसु गदेस संजादो सगणिो अहवा॥" के बाद दीगई है: -त्रिलोकप्रशप्ति तत्तो कक्की जादो इंदसुदो तस्स चउमुहोणामो। सत्तरिवरिसा पाऊ विगुणिय-इगिवीसरजत्तो॥९९।। "पणछस्सय बस्संपणमासजुदं गमिय वीरणिवइदो। प्राचारांगधरादो पणहत्तरिजुत्तदुसयवासेपे । सगराजो तो ककी चदुणवतियमहियसगमासं ॥" बोलीणेसु बद्धो पट्टो कक्कीसणरवइणो । १००॥ -त्रिलोकसार कक्किसुदो अजिदंजय णामो रक्खति णमदि तच्चरणे । तं रक्खदि असुरदेो धम्मे रज्ज करेज्जंति ॥१०॥ वीरनिर्वाण और शकसंवत् की विशेष जानकारीके तत्तो दोवे वासो सम्मं धम्मो पयदि जणा। लिये, लेखककी 'भगवान महावीर और उनका समय' कमसो दिवसे दिवसे कालमहप्पेण हाएदे ॥१०॥ नामकी पुस्तक देखनी चाहिये।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy