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________________ वर्ष २ किरण २] . भगवान महावीरके बादका इतिहास इम प्रकार १८ बरम इम वंशका राज्य रहा। गवर्नरकी मारफत अतुल धन लगाकर इस झीलवासुदेवका राज ईस्वी १७६ तक रहा। काबुलमे को पक्का बना दिया था और नहरें निकाल दी थीं। मथुरा तक उसका राज था। बिलोचिस्तानमें शक राजा रुद्रदामाने इसकी मरम्मत कराई और कुछ ऐसे लेम्ब मिले हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि लेख खुदवाया जिसका सारांश इस प्रकार है:वहाँ भी उमका गज था और वहाँ भी बौद्ध-धर्म “श्राकर अवन्ति, नीवृत, आनर्त, मुराष्ट्र, फैल गया था। वह बौद्ध-धर्म प्रचारक था, परन्तु तु धान, मारवाड़, कच्छ, सिंधु, सौवीर, कुकर, प्रजाको खुश रखनेके वास्ते अपने सिक्कोंपर शिव, अपरान्त, निषाद आदि सब प्रदेशोंका स्वामी नन्दी और त्रिशूलकी मूर्ति बनाने लगा था। यौधोयोंके राज्यको जबरदस्ती उखाड़ फेंकने वाला ईरानके सासानी गजा भी ईसाकी तीसरी शताब्दी । ताब्दा अपने सम्बन्धी मातकर्णीको लड़ाई में दो बार में अपने सिक्कोंपर शिव और नन्दीकी मूर्ति । जीतने वाला, महाक्षत्रप नाम वाला, गज कन्याओं बनाने लगे थे। के स्वयंबरों में मालायें पाने वालेने झीलकी उज्जैनका गज्य ईस्वी ११० में एक पुराने मरम्मत कराई।" महाक्षत्रप चष्टनने कनिष्कक बेटोंसे छीन लिया इससे सिद्ध है कि शकराज अब फिर उज्जैन था । चष्टनका बेटा जयदामा और पोता रुद्रदामा में लेकर पच्छिममें सिंध तक और सारे दक्खन हुधा । इम्वी १३० में रुद्रदामाने दक्षिण देशके में फैल गया था। यौधेय जाति पंजाबमें सतलज महाराजा गौतमीपुत्रके बेटे राजा सातकार्ण के पास रहती थी, उसकोभी रुद्रदामाने दो बार पुलुमायाको अपनी बेटी व्याह दी थी। उस समय हराया अर्थान इधरभी उसका राज होगया। इस रुद्रदामाका गज्य कच्छ देशमें ही रह गया था। लेखस यह भी स्पष्ट सिद्ध होता है कि इतना ही पुलुमायाके पिता गोतमीपुत्रने दक्षिणका बहुतसा नहीं था कि हिन्दुस्तानके क्षत्रिय लोग इन शकोंकी राज्य रुद्रदामासे छीन लिया था, वह कट्टर हिन्दू कन्या ले तो लें किन्तु देते नहीं, बल्कि क्षत्रिय था और शकोंको हिन्दुस्तानसे निकालना चाहता गजाओंकी कन्यायें भी इन शक राजाओं के गलेमें था। ईम्बी १५० में रुद्रदामाने अपने जमाई सात- वरमालाये डालती थीं और इनसे व्याही जाती थीं। कर्णिसे लड़ाई करके वह मब देश छीन लिया जो सातकर्णिके पिता गौतमीपुत्रने कद्रदामासे छीन रुद्रदामाकं मरने पर उसके बेटों, दामजद लिया था। गिरनार के पास एक बहुत बड़ी झीलका और मद्रसिंह में लड़ाई रहती रही। अव्वल बाँध टूट गया था, रुद्रदामाने उसकी मरम्मत दामजद गजा हुश्रा, फिर उसके पीछे रुद्रसिंहका कराई। यह झील जैनराजा चन्द्रगुमने यनवाई बेटा नद्रसेन राजा हुआ । उसके बाद उसका भाई थी, इससे दूर-दूर तक खतोंकी श्रावपाशी होती सिंह दामा, फिर उसका भाई वामसेन ईन्वी २३६ थी। महाराजा अशोकने तुशासप नामके अपने तक राजा रहा। दामसेनके याद ईश्वरदत्त नामके
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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