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________________ १३० अनेकान्त [ मार्गशीर्ष, वीर-निर्वाण सं० २४६५ जिन्होंने, देवागम, नामक अपने प्रवचनके द्वारा देवागमको-जिनेन्द्रदेवके श्रागमको–इस लोकमें व्यक कर दिया है, वे भारतभूषण और एकमात्र मद्र-प्रयोजनके धारक श्रीसमन्तभद्र लोकमें प्रकाशमान हो।- अर्थान अपनी विद्या और गुणों के बालोकसे लोगोंके हृदयान्धकारको दूर करनेमें समर्थ होवें। यद्वारत्याः कविः सर्वोऽभवत्सज्ञानपारगः । तं कविनायकं स्तौमि समन्तभद्र-योगिनम् ॥ -चन्द्रप्रभचरिते, कविदामोदरः । जिनको भारतीके प्रसादसे-शानभाण्डाररूप मौलिक कृतियोंके अभ्यासस-समस्त कविसमूह सम्यग्ज्ञानका पारगामी हो गया, उन कविनायक-नई नई मौलिक रचनाएँ करने वालोंके शिरोमणियोगी श्री समन्तभद्रको मैं अपनी स्तुतिका विषय बनाता हूँ-वे मेरे स्तुत्य हैं, पूज्य हैं। जीयात्समन्तभद्रोऽसौ भन्य-कैरक-चन्द्रमाः। दुर्वादि-वाद-कराडूनां शमनैकमहौषधिः ।। -हनुमाचरित्रे, ब्रह्म अजितः । वे स्वामी समन्तभद्र जयवन्त हों-अपने ज्ञान तेजसे हमारे हृदयोंको प्रभावित करें--जो भव्यरूपी कुमुदोंको प्रफुल्लित करनेवाले चन्द्रमा थे और दुर्वादियोंकी वादरूपी खाज ( खुजली ) को मिटानेक लिये अद्वितीय महौषधि थे-जिन्होंने कुवादियोंकी बढ़ती हुई वादाभिलाषाको ही नष्ट कर दिया था। समन्तभद्रस्स चिराय जीयाद्वादीभ-वजांकुश-मूक्तिजाल:। यस्य प्रभावात्सकलावनीयं वंध्यास दुर्वादुक-वार्तयाऽपि ॥ -श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० १०५ । वे स्वामी समन्तभद्र चिरजयी हों-चिरकाल तक हमारे हृदयोंमें सविजय निवास करें--, जिनका सूक्तिसमूह-सुन्दर-प्रौढ युक्तियोंको लिए प्रवचन-वादिरूपी हस्तियोंको वशमें करने के लिये वनांकुश का काम देता है और जिनके प्रेभावसे यह सम्पूर्ण पृथ्वी एकबार दुर्वादकोंकी वानांस भी विहीन होगई थी-उनकी कोई बात भी नहीं करता था। समन्तभद्रस्संस्तुत्यः कस्य न स्यान्मुनीश्वरः। वाराणसीश्वरस्याग्रे निर्जिता येन विद्विषः॥ ___-तिरुमकूडलुनरसीपुर शि० लेख नं० १०५ । जिन्होंने वाराणसी (बनारस ) के राजाके सामने विद्वेषियोंको-सर्वथा एकान्तवादी मिथ्यादृष्टियोंको-पराजित कर दिया था, वे समन्तभद्र मुनीश्वर किसके स्तुतिपात्र नहीं हैं. ? अर्थात , सभीक द्वारा भले प्रकार स्तुति किये जानेके योग्य है।
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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