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वर्ष २
ॐ अर्हम्
अनेका
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्त्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भ्रुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ||
सम्पादन - स्थान -- वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा जि० सहारनपुर प्रकाशन-स्थान- कनॉट सर्कस पो० ब० नं० ४८ न्यू देहली मार्गशीर्ष शुक्ल, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १६६५
समन्तभद्र-स्तवन
समन्तभद्रं सद्बोधं स्तुवे वरगुणालयम् ।
निर्मलं यद्यशष्कान्तं बभूव भुवनत्रयम् ।। - जिनशतकटीकायां, नरसिंहभट्टः ।
किरण २
उन स्वामी समन्तभद्रका मैं स्तवन करता हूँ, जो सद्बोधरूप थे - सम्यग्ज्ञानकी मूर्ति थे, श्रेष्ठ गुणोंके आवास थे- उत्तम गुणोंने जिन्हें अपना आश्रयस्थान बनाया था, और जिनकी यशः कान्तिसे तीनों लोक अथवा भारतके उत्तर, दक्षिण और मध्य ये तीनों विभाग कान्तिमान थे—-आर्थात् जिनका यशस्तेज सर्वत्र फैला हुआ था । :
समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः । देवागमेन येनाsत्र व्यक्तो देवागमः कृतः ।। - पाण्डवपुराणे, शुभचन्द्राचार्यः ।